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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वैरभावको बनाये रखने के उद्देश्यसे तो बहुत ही कम लोगोंने पैसा दिया होगा। असंख्य लोगोंके मनमें तो एक ही विचार था, और वह यह कि जो बिना किसी अपराधके निर्दोष ही मारे गये उनकी स्मृतिको चिरस्थायी बनाया जाना चाहिए। बहुतसे लोगोंकी भावना यह भी थी कि जलियाँवाला बागको सार्वजनिक सम्पत्तिमें परिवर्तित करके तथा उसमें स्मारक बनाकर १३ अप्रैल, १९१९ के दिन हिन्दू-मुसलमानोंमें जो एकता नजर आई थी उसमें और भी वृद्धि की जा सकेगी। सर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने जो वाक्य कहे वे बिलकुल सही हैं। जनरल डायरकी क्रूरताको याद रखकर हम हरगिज प्रगति नहीं कर पायेंगे। लेकिन सत्य, दृढ़ता, वीरता, निर्दोषता आदि स्थायी गुणोंकी स्मृतिको अक्षुण्ण बनाना जनताका कर्तव्य है; इसीमें उसकी उन्नति निहित है।

[गुजराती से]

नवजीवन, १८-४-१९२०


११७. तार : छोटानीको'

अहमदाबाद

१८ अप्रैल, १९२०

पूरी बातचीतके बिना जाना असम्भव। २०वीं के टिकट रद्द करवा दें। मंगलवारको पहुँच रहा हूँ।

[अंग्रेजी]

बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स

११८. भाषण : अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी सभामें

१८ अप्रैल, १९२०

आज हम लोग यहाँ न्यायकी शान्तिमय विजयका दूसरा वार्षिकोत्सव मना रहे हैं। मजदूरोंकी इस जीतको में न्यायकी ही जीत कहता हूँ, क्योंकि मजदूरोंकी माँग न्यायपूर्ण थी और उन्हें स्वीकृत कराने के लिए उन्होंने जिन साधनोंको अपनाया था वे भी शुद्ध थे। में अन्यायके मार्गसे तो मजदूरोंकी जीतकी भी इच्छा नहीं कर सकता।

१. मियाँ मुहम्मद हाजी जान मुहम्मद छोटानी।

२. खिलाफत आन्दोलनके सम्बन्ध में इंग्लैंड जानेके लिए।

३. यह भाषण गुजरातीमें दिया गया था और नवजीवनमें इस लेखका शीर्षक "मिल मजदूरोंकी वार्षिक सभा" है।

४. यहाँ मिल-मजदूरोंकी उस हड़तालसे तात्पर्य है जो १९१८ में हुई थी; देखिए खण्ड १४।