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टिप्पणियाँ

हमारा फर्ज है कि हम सावधान रहें। भूल होनेके भयसे हाथपर-हाथ रखकर बैठे रहना कायरता है। इसलिए भूल होनेकी आशंका रहनेपर भी व्यक्तिको चाहिए कि वह जहाँ अन्याय मालूम पड़े वहाँ प्रेमभावसे उसका विरोध करके परिणामका अधिकारी बने। ऐसी मेरी नम्र मान्यता है कि यही 'गीता'का मार्ग है।

चम्पारनमें,' खेड़ा और रौलट अधिनियमकी प्रवृत्ति में अन्यायका तीव्र विरोध करनेमें द्वेषभावको बिलकुल तो नहीं रोक सका लेकिन अन्यायको थोड़े अथवा ज्यादा अंशोंतक रोकने में अवश्य सहायक हो सका हूँ तथा लोगोंको सत्याग्रह रूपी सूर्यकी झाँकी भी दिखा सका हूँ। उसके तेजको मैं पूर्णतया नहीं दिखा सका, क्योंकि मेरी समझ में अभी मेरी तपश्चर्या और ज्ञानमें बहुत खामियाँ हैं। मैं अंग्रेजोंका मित्र हूँ। मेरी अन्तरात्मा कहती है कि मिल-मालिकोंके प्रति मेरे मनमें कोई द्वेषभाव नहीं है। इसलिए मैं शान्त- चित्त हो अपने मार्गपर चलता रहा हूँ।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १८-४-१९२०

११६. टिप्पणियाँ

सत्याग्रह सप्ताह

सत्याग्रह सप्ताह निर्विघ्न बीत गया है। मुझे उम्मीद है कि गुजरात और काठियावाड़के प्रत्येक गाँवके स्वयंसेवक इस प्रवृत्तिका संक्षिप्त विवरण, 'नवजीवन' में प्रकाशनार्थ लिख भेजेंगे। प्रत्येक स्थानपर कितना चन्दा इकट्ठा हुआ और उसकी क्या व्यवस्था की गई, उसकी खबर भी देंगे । बम्बई पाँच लाख रुपये तो इकट्ठे नहीं किये जा सकें, फिर भी अच्छी रकम इकट्ठी हुई। लेकिन रकम कितनी इकट्ठी हुई है इसके बजाय वह किस तरह इकट्ठी हुई है, यही जानना अधिक उचित होगा। और इसे जानकर सन्तोष भी मिल सकता है। धनिक लोगोंने बड़ी-बड़ी रकमें दी हैं, लेकिन गरीबसे-गरीब व्यक्तियोंने भी यथाशक्ति दिया है। स्त्रियोंने स्वयं चन्दा दिया, इतना ही नहीं अन्य स्त्रियोंको भी चन्दा देनेके लिए प्रेरित किया है। गुजराती स्त्री-मण्डलने इसमें अच्छा योगदान दिया। उसने श्रीमती सरलादेवीकी अध्यक्षता में जोरदार लेकिन उचित भाषामें एक प्रस्ताव भी पास किया । ढेडों और भंगियोंने भी यथाशक्ति कोषमें चन्दा दिया और हरएकने प्रसन्नतापूर्वक दिया। यह कहा जा सकता है कि इसके लिए किसीसे आग्रह करने अथवा किसीको शरमिन्दा करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके अतिरिक्त चन्दा देनेवाले सैकड़ों भाई-बहनोंसे बातचीत करनेपर मुझे मालूम हुआ कि रोष अथवा

१. १९१७ में।

२. १९१८ में।

३. १९१९ में।

४. जलियाँवाला स्मारक कोषके लिए।

१९-२३