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पत्र:एस्थर फैरिंगको

रिश अंगीकार कर ले। हमारा जिस मुख्य सिफारिशसे सम्बन्ध है वह यह है कि भविष्यमें किसी भी परिस्थितिमें सर माइकेल ओ'डायर और जनरल डायरको भारत में या ब्रिटिश साम्राज्यके किसी अन्य हिस्सेमें कोई जिम्मेदारीका पद न दिया जाये। हमारी यह न्यूनतम माँग है कि इन अधिकारियोंको पदच्युत कर दिया जाये। हम यह स्वीकार करते हैं कि पंजाबमें कुछ लोगोंने ऐसे बुरे काम किये जो निन्दनीय हैं, लेकिन जो कृत्य सरकारी अफसरोंने किये वे तो उनसे भी बुरे थे। जलियाँवाला बागमें क्या-कुछ हुआ, यह हम कभी भी भुला नहीं सकते। हम वहाँ मारे गये निरीह लोगोंकी स्मृति कभी नहीं भूल सकते। मुझे इस बातसे बड़ी खुशी हुई है कि बम्बईके लोगोंने स्मारक-कोषके लिए ३,२५,००० रुपये दिये हैं, हालाँकि मैं कहूँगा, मुझे इस बात से कुछ निराशा भी हुई है कि यह रकम उतनी बड़ी नहीं है जितनीकी में अपेक्षा रखता था। आगे बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि हम जीते जी कभी भी जलियाँवाला बागके उन मृतकोंकी स्मृति नहीं भूल सकेंगे। मेरे मनमें प्रतिशोधकी कोई भावना नहीं है, क्योंकि प्रतिशोध लेना कायरोंका काम है। लेकिन हम मृतकोंकी याद कभी भी भुला नहीं सकते। यह स्मारक खड़ा करनेमें हमारा उद्देश्य मात्र इतना ही है कि हम उन निर्दोष मृत व्यक्तियोंकी स्मृतिको श्रद्धासे सँजोकर रखें। हमारे मनमें कभी भी कोई दुर्भावना नहीं आई है।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १४-४-१९२०

१११. पत्र : एस्थर फैरिंगको

साबरमती

१५ अप्रैल, १९२०

रानी बिटिया,

में बम्बईसे अभी-अभी लौटा हूँ। मैंने उपवास तथा प्रार्थनाका सप्ताह' वहीं बिताया। यह सच है कि मैंने तुम्हें पत्र नहीं लिखा है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मैंने इस बीच तुम्हारे बारे में कुछ कम सोचा है अथवा तुम्हारे लिए कुछ कम प्यारसे दुआएँ की हैं। मेरे पास जरा भी समय न था और फिर मुझे यह लगा कि तुम्हें इतने काफी पत्र भेज चुका हूँ कि वे तुम्हारे लिए कुछ समयतक पर्याप्त होंगे। यदि मैं तुम्हारी मनःस्थितिसे अवगत होता तो कुछ और भेजता। इसीलिए मैंने कुछ दिन तुम्हें पत्र नहीं लिखा।

लेकिन अब मुझे तुम्हारा मूल्यवान पत्र मिल गया है। तुम्हारे विवाहके सम्बन्धमें अब मैंने वस्तुस्थितिको स्वीकार कर लिया है। मैं उसके विरुद्ध कुछ

१. राष्ट्रीय सप्ताह (६ अप्रैलसे १३ अप्रैलतक)।