लिए तो यह कदम अनिवार्य होगा। फिर भी मैं अनुमति और स्वीकृतिके आप कृपा बिना इंग्लैंड नहीं जाना इसे परमश्रेष्ठके सामने प्रस्तुत करने तथा तारसे करेंगे? यदि परमश्रेष्ठकी स्वीकृति मिल गई हो तो मैं अपने तथा साथियोंके लिए, जो कुल मिलाकर सातसे अधिक नहीं होंगे सबसे पहले जहाजसे यात्राकी सुविधाएँ चाहूँगा।
[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स
११०. भाषण:राष्ट्रीय सप्ताह सभा,बम्बईमें
१३ अप्रैल, १९२०
राष्ट्रीय सप्ताहके सिलसिलेमें होमरूल लीगकी बम्बई शाखा तथा नेशनल यूनि-यनके तत्त्वावधान में फ्रेंच ब्रिज (बम्बई) के पासवाले मैदानमें एक सार्वजनिक सभा की गई। अध्यक्षता श्री मु० अ० जिन्नाने की।
श्री मो० क० गांधीने निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किया।
श्री गांधीने कहा कि आप सबने डा० [रवीन्द्रनाथ] ठाकुरका सन्देश सुना। उसके सम्बन्धमें मैं कह सकता हूँ कि पंजाबके कुछ अधिकारियों द्वारा किये गये बर्बर कृत्योंको भर्त्सना जितने तीखे शब्दोंमें महाकविने की है उससे अधिक तीखे शब्दोंमें और कोई नहीं कर सकता। मैं अध्यक्ष महोदयके इस विचारसे पूरी तरह सहमत हूँ कि जनरल डायरने जो काम किया वह किसी भी सिपाहीके लिए अशोभनीय था और अगर उपयुक्त था तो कायरोंके ही उपयुक्त था। आगे श्री गांधीने कहा कि सरकारसे हमारा अनुरोध है कि वह ऐसे कदम उठाये जिससे पंजाबमें अत्याचारोंकी पुनरा-वृत्ति असम्भव हो जाये और साथ ही वह कांग्रेस उप-समितिकी पूरीकी-पूरी सिफा-
१. प्रस्ताव इस प्रकार था:
बम्बईके नागरिकोंकी इस सभाका मत है कि अमृतसर में भीड़ने जो उत्पात किये वे यद्यपि गम्भीर उत्तेजनाओंके वशीभूत होकर ही किये गये थे, फिर भी निन्दनीय हैं; लेकिन दूसरी ओर जलियाँवाला बागमें जनरल डायरने, बिना किसी चेतावनीके, जान-बूझकर और योजनापूर्वक सर्वथा निरीह, निहत्थे और अन्य प्रकारसे भी बिल्कुल अरक्षित लोगोंका जो संहार करवाया वह वर्बरताका एक बेमिसाल कारनामा था। सभा यह आशा करती है कि भारत सरकार और साम्राज्यीय सरकार ऐसे कदम उठायेंगी जिससे मार्शल लोंके अमलके दौरान पंजाबके अधिकारियों द्वारा की गई ऐसी बर्बरता या इसी तरहकी अन्य बर्बरताओंको दुहराना असम्भव हो जाये। सभा यह भी आशा करती है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी पंजाब उप-समितिने जो सिफारिश की हैं, वे पूरीकी-पूरी अमलमें लाई जायेंगी।
२. गांधीजीने जब प्रस्ताव प्रस्तुत किया, उससे पूर्व ही श्री सी० एफ० एन्ड्यूजने महाकवि रवीन्द्र- नाथ ठाकुरसे प्राप्त एक सन्देश पढ़कर सुनाया, जिसमें जलियाँवाला बागके हत्याकाण्डकी भर्त्सना की गई थी।