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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आगे बोलते हुए श्री समर्थन कभी नहीं किया है गांधीने कहा कि मैंने बिना सोचे-विचारे किसी उद्देश्यका और न कभी किसीका करूंगा हो। मैं आपसे मुसलमानोंको मदद करनेको इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे लगता है कि मुसलमानोंका पक्ष न्याय- संगत है। प्रधान मन्त्रीसे खिलाफत शिष्टमण्डलको भेंटके समय जो-कुछ हुआ, उसकी रिपोर्ट मैंने पढ़ ली है, और उसमें मैंने देखा कि शिष्टमण्डलने ऐसी कोई माँग नहीं की जो न्यायोचित नहीं थी। और अब हम ब्रिटिश साम्राज्यके प्रधान मन्त्रीसे स्वभावतः जो आशा करते हैं वह यही कि वे युद्धके दौरान टर्कीके प्रश्नके सम्बन्धमें दिये गये अपने गम्भीर वचनोंका पालन करेंगे। भारतके मुसलमान चाहते हैं कि टर्कीके सम्बन्धमें यथासम्भव युद्धसे पूर्वकी स्थिति कायम रखी जाये । अन्य बातोंके अलावा वे यह भी चाहते हैं कि कुस्तुन्तुनिया तथा टर्कोके यूरोपीय प्रदेश तुर्कीके हाथोंमें रहें और जजीरत-उल- अरबपर टर्कीकी अधिसत्ता हो । जहाँतक टर्की साम्राज्यके उन प्रदेशोंका प्रश्न है जिनमें गैर-मुस्लिम जातिके लोग बहुसंख्यक हैं, यूरोपीय शक्तियाँ उन गैर-मुस्लिम जातियोंके संरक्षणार्थ टकसे जो-कुछ आश्वासन लेना चाहें ले सकती हैं बशर्ते कि ये अश्वासन ऐसे न हों जो सुलतानकी पद-मर्यादाके प्रतिकूल पड़ें। यदि अरब लोग, जो मुसलमान हैं, स्वायत्त शासन चाहते हों तो उन्हें दिया जा सकता है, परन्तु वे सुलतानकी अधिसत्तामें रहें। जब हम भारतमें स्वायत्त शासनकी माँग करते हैं तो उसका अर्थ यह नहीं है कि हम ब्रिटिश शासन नहीं चाहते। ऐसा एक भी हिन्दू या मुसलमान नहीं है जो भारतपर ब्रिटिश झंडा फहराते रहने के विरुद्ध हो । इसी तरह अरबको स्वायत्त शासन दिया जा सकता है, परन्तु उसपर सुलतानकी अधिसत्ता रहनी चाहिए । अन्तमें श्री गांधीने अपने मुसलमान भाइयोंसे हार्दिक निवेदन किया कि वे लोग हिंसासे दूर रहें। उन्होंने कहा कि आपका उद्देश्य न्यायोचित है और ईश्वरकी सहायतासे वह अवश्य सफल होगा।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १०-४-१९२०



१. १७ मार्च, १९२० को।

२. हेजाजके पवित्र स्थान। २९ मार्च, १९२० को भारत सरकारने भी स्पष्ट शब्दोंमें कह दिया था कि ये स्थान मुसलमानोंके नियन्त्रणमें हो रहेंगे।