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भाषण:राष्ट्रीय सप्ताह सभा, बम्बई में

मेरा कुछ निश्चित नहीं है।'

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ७१६८) की फोटो-नकलसे।

१०६. भाषण : राष्ट्रीय सप्ताह सभा, बम्बई में

९ अप्रैल, १९२०

श्री मो० क० गांधीने निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किया।

श्री गांधीने कहा कि हम यहाँ आज केवल खिलाफतके प्रश्नको लेकर इकट्ठे नहीं हुए हैं, बल्कि यहाँ जमा होनेका हमारा उद्देश्य पिछले बारह महीनोंमें भारतमें जो कुछ हुआ है उसपर नजर दौड़ाना है। अन्य बातोंके अतिरिक्त जो दो अत्यन्त प्रमुख बातें हुई हैं, वे हैं स्वदेशीका उद्घाटन तथा सच्ची हिन्दू-मुस्लिम एकताकी नींवका रखा जाना। इनमें से पहलीका सूत्रपात गत अप्रैल महीनेमें हुआ और दूसरी उस समय एक निविवाद तथ्य बन गई जब जलियाँवाला बागमें हिन्दुओं और मुसलमानोंका रक्त एक होकर बहा। उस दिनसे वह एकता लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने हिन्दुओंसे खिलाफतके सवालपर अपने मुसलमान भाइयोंके साथ हमदर्दी दिखाकर और उनकी मदद करके इस एकताको सदाके लिए पक्का कर देनेकी अपील की। उन्होंने कहा कि तुर्की साम्राज्यके छिन्न-भिन्न हो जानेके खतरे, और खिलाफतके सवालको लेकर मुसलमानोंके मनमें इतनी कटुता आ गई है जितनी पहले कभी किसी सवालपर नहीं आई थी। यदि इस समय हिन्दू लोग मुसलमानोंके प्रति सहानुभूति नहीं दिखाते हैं तो इस एकताकी इमारतको दृढ़ बनानेका यह बहुत अच्छा मौका हाथसे निकल जायेगा, और वह फिर शायद कभी भी प्राप्त न हो।

१. गांधीजी २९ अप्रैलको सिंहगढ़ पहुँचे थे।

२.९ अप्रैल, १९२० की रातको फ्रेंच बिजके निकटवर्ती मैदानमें राष्ट्रीय सप्ताहके सिलसिले में भारतकी केन्द्रीय खिलाफत समितिके तत्वावधान में बम्बईके नागरिकोंकी एक आम सभा हुई थी। श्री मियाँ मुहम्मद हाजी जान मुहम्मद छोटानीने सभाकी अध्यक्षता की। टाइम्स ऑफ इंडिया, १०-४-१९२० को रिपोर्ट में इतना और दिया गया है कि कार्यवाही हिन्दी भाषामें हुई थी।

३. प्रस्ताव इस प्रकार है:“बम्बईमें रहनेवाले हिन्दुओं, मुसलमानों तथा अन्य लोगोंकी यह सभा विश्वास करती है कि खिलाफतका मसला भारतके मुसलमानोंकी उचित मांगोंको ध्यान में रखते हुए तथा सम्राटके मन्त्रियों द्वारा गम्भीरतापूर्वक दिये गये वचनोंकी रक्षा करनेकी दृष्टिसे हल किया जायेगा। यह बैठक अपना यह मत अंकित करती है कि प्रतिकूल फैसला होनेपर प्रत्येक भारतीयका यह कर्त्तव्य होगा कि वह सरकारके साथ सहयोग करना तबतक बन्द रखे जबतक कि उन वचनोंका पालन नहीं होता और जबतक मुसलमानोंकी भावना सन्तुष्ट नहीं की जाती।