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१०५.पत्र:देवदास गांधीको

बम्बई

[८ अप्रैल, १९२०]

चि० देवदास,

तुम्हारे पत्र मिलते रहते हैं। अभी और पत्रोंको राह देख रहा हूँ। फिलहाल मुझे नियमपूर्वक ही लिखते रहना। वहीं सब-कुछ कैसे चल रहा है, यह जानने की मैं हमेशा राह देखता रहता हूँ।

सबसे पहले अपनी तबोयतको सँभालना। अध्ययन उसके पीछे आता है और इन दोनों के बीच आत्माका विकास।यह आत्मा तो शरीर और अध्ययन दोनोंको अपने प्रकाशसे आलोकित करेगो हो। जिसने आत्माको पहचान लिया उसने सब-कुछ जान लिया है। शरीरको भी उसीके लिए सँजोये, अध्ययन भी उसीके लिए करे. लेकिन इस वाक्यका कुछ भी अर्थ नहीं है और बहुत गूढ़ अर्थ भी है। यदि हम सब वस्तुओंको [उस आत्माको प्राप्तिका] साधन मानकर अपना कार्य करें तो हमें उसकी प्रतीति होती चली जायेगी। उसका ज्ञान होनेतक हमें श्रद्धाभाव रखना होगा अथवा 'गीता' की भाषानें कहें तो फलको आकांक्षा किये बिना कार्य करते रहना होगा। एक हीरेको प्राप्त करनेके लिए लाखों व्यक्ति खान खोदते हैं। बहुत वर्षोतक तो इस श्रद्धाका सहारा लिये रहना पड़ता है नीचे हीरा अवश्य है; और अन्तमें जब वह मिल जाता है तब वह एकाएक वहाँ टपक पड़ा हो, सो बात नहीं; वह तो हमेशासे वहीं था। ठीक यही बात आत्मा तथा आत्मज्ञानपर लागू होती है। लेकिन यह सब मैं तुम्हें किस लिए लिख रहा हूँ? तुम जाने-अनजाने आत्माके दर्शन करते ही जा रहे हो। मैं तो स्वास्थ्य और अव्ययनके सम्बन्ध में लिखते-लिखते यह सब लिख गया हूँ। मैंने अध्ययनको स्वास्थ्य-रक्षासे नीचेका स्थान दिया है। क्या हम आत्मानुभूतिको भी शरीरसे गौण मानेंगे? यह विचार करते हुए मैंने देखा कि आत्माको प्रतीति तो हमेशा होती ही रहती है। बोमारोके समय भी उसे पहचानने का प्रयास कुछ कम नहीं हो जाता। इसमें कुछ समझ में न आया हो तो पूछना।

सरलादेवो मेरे साथ ही हैं। पंडित रामभजदत्तके कल आनेकी उम्मीद है। भाई महादेव भाई शामको हजीरा गये हैं। दुर्गा भी साथ है। वहाँसे २१ तारीखतक सिंहगढ़ पहुँचेंगे।

१. इस पत्रपर देवदास गांधीको कुछ शब्द सरलादेवी चौधरानीने भी लिखे थे; वहाँ यही तारीख दी गई है।

२. देवदास गांधी इन दिनों बनारसमें हिन्दीका उच्चतर अध्ययन कर रहे थे।

३. महादेव देसाईकी पत्नी।