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१०३. पंजाबके मृत्यु-दण्डके मामले

कांग्रेसकी पंजाब उप-समिति द्वारा नियुक्त आयुक्तोंने अपनी रिपोर्टमें परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदयपर विचार-शक्तिकी घोर कमीका आरोप लगाया है। परमश्रेष्ठने मृत्यु-दण्डके पाँचमें से दो मामलोंमें फाँसीकी सजा कम करने से इनकार करके उक्त आरोपकी सत्यता सिद्ध कर दी है। जैसे सैनिक अदालतोंकी कार्यवाहीको अवैध मानकर रद कर देनेसे वे निर्दोष सिद्ध नहीं हो जाते, वैसे ही प्रीवी कौंसिल द्वारा उनकी अपील खारिज कर दिये जानेसे वे अपराधी नहीं सिद्ध होते। इसके अतिरिक्त पंजाब-सरकार- ने शाही घोषणाकी जो व्याख्या की है, उसके अनुसार ये मामले इस घोषणाके अन्तर्गत आ जाते हैं। अमृतसरमें जो हत्याएँ हुईं वे हत्यारों और मृतकोंके बीच हुए किसी निजी झगड़ेके कारण नहीं हुईं। यह अपराध गम्भीर तो था, किन्तु विशुद्ध रूपसे राजनीतिक था और उत्तेजनाके वशीभूत होकर किया गया था। हत्याओं और आगजनीका बदला लेनके लिए जितना-कुछ करना जरूरी था, सरकार उससे ज्यादा कर चुकी है। इन परिस्थितियों में सामान्य समझदारीका तकाजा तो यही है कि मृत्यु दण्डकी सजाएँ माफ- कर दी जायें। आम जनताका ऐसा विश्वास है कि जिन लोगोंको मृत्यु-दण्ड दिया गया है वे निर्दोष हैं और उनके मामलोंकी सही सुनवाई नहीं की गई है। इन मृत्यु- दण्डोंको कार्यान्वित करने में इतनी देर हो गई है कि यदि अब उन्हें फांसी दी गई तो भारतीय मानसको जबरदस्त आघात लगेगा। यदि कोई भी विचारशील वाइसराय होता तो मृत्यु-दण्डको कम करनेकी घोषणा तुरन्त कर देता। लेकिन लॉर्ड चेम्सफोर्ड भला ऐसा क्यों करने लगे? स्पष्ट है कि उनके विचारसे, अगर कुछ लोगोंको भी फाँसीपर नहीं लटकाया गया तो न्यायकी मांग पूरी नहीं हो सकेगी। हम अब भी यही आशा रखेंगे कि या तो वाइसराय महोदय या श्री मॉण्टेग्यु इन मृत्यु-दण्डोंको कम कर देंगे।

लेकिन अगर सरकार यह गम्भीर भूल कर हो जाती है, और वह इन सजाओंको कार्यरूप दे ही देती है तो जनता भी इन लोगोंके फाँसीपर लटकाये जानेपर क्रोध अथवा दुःख करके उतनी ही बड़ी भूल करेगी। अगर हम ऐसा राष्ट्र बनना चाहते हैं जिसकी आवाजकी दुनियाके राष्ट्रोंके बीच केंद्र हो, अगर हम ऐसा ऊँचा दर्जा पाना चाहते हैं जिससे अधिक ऊँचा दर्जा दुनियाके और किसी राष्ट्रका न हो तो हमें एक हजार नहीं हजारों-हजार निर्दोष स्त्री-पुरुषोंकी हत्याको बरदाश्त करनेके लिए मनसे तैयार रहना चाहिए। अतएव हमें आशा है कि सभी सम्बन्धित लोगोंको, फाँसीकी सजाओंको जीवनकी एक सामान्य बात मानते हुए, अपना साहस खोनेके बजाय और अधिक साहस जुटाना चाहिए।

१. देखिए “ अनृतसरकी अपीलें", ३-३-१९२०।

२. दिसम्बर १९१९ की।