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७. पत्र: एल० फ्रेंचको[१]

लाहौर

३ फरवरी, १९२०

मार्शल लॉके अन्तर्गत तथा अन्य प्रकारसे सजा पाये हुए उन राजनीतिक या अर्ध-राजनीतिक कैदियोंके सम्बन्धमें रोज ही पूछताछ की जा रही है जो अभीतक रिहा नहीं किये गये हैं। मैंने जानकारी हासिल करने तक ही चिन्ता नहीं की है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि रिहाईके योग्य सभी सम्भव:बन्दियोंकी सूची तैयार करने में समय तो लगेगा ही।

किन्तु यदि आप मुझे यह बता सकें कि भाई परमानन्द[२] सहित अन्य बन्दी तथा वे, जिन्हें लाहौर-षड्यंत्रके मुकदमोंमें सजा दी गई थी, रिहा किये जानेवाले हैं अथवा नहीं, [तो कृपा हो]।

अभी हालमें रिहा किये गये व्यक्तियोंसे जो इकरारनामे लिखाये गये हैं, उनके बारेमें लोग एतराज उठा रहे हैं। यह फर्क[३] क्यों किया गया है, क्या इसका कारण बताना सम्भव होगा?

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७१०२) से।

८. ब्रिटिश गियाना और फीजीके शिष्टमण्डल[४]

[४ फरवरी, १९२० के पूर्व][५]

इस समय भारतमें विदेशोंसे दो शिष्टमण्डल आये है। एक ब्रिटिश गियानासे आया है, जिसके नेता वहाँके महान्यायवादी डा० न्यूनन है और दूसरा फीजीसे, जिसके नेता पॉलीनेशियाके बिशप है। ये दोनों शिष्टमण्डल अपने-अपने उपनिवेशोंके

  1. १. पंजाब सरकारके मुख्य सचिव।
  2. २. पंजाबके एक क्रान्तिकारी नेता, जिन्हें कालेपानीकी सजा दी गई थी, परन्तु बादमें रिहा कर दिया गया था; आगे चलकर वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभाके अध्यक्ष हुए।
  3. ३. मुख्य सचिवने अपने ६ फरवरी, १९२० के उत्तर में कहा कि सम्राटकी घोषणाके अन्तर्गत ७३४ बन्दियों में से ६३८ रिहा किये जा चुके हैं और उनके बारेमें, जिन्हें लाहौर-षडयन्त्रके मुकदमोंमें सजा दी गई थी (जिनमें भाई परमानन्द भी थे) अभी विचार हो रहा है। उन्होंने यह भी लिखा कि अधिक गम्भीर अराजनीतिक अपराधोंके अभियुक्तोंसे ही इकरारनामे लिखाये गये हैं।
  4. ४. देखिए, "पंजाबकी चिट्ठी-१०", २-२-१९२०, "पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको", ४-२-१९२० के पूर्व और "पत्र : डा० न्यूननको", ५-२-१९२० भी।
  5. ५. यह लेख स्पष्ट ही ४ फरवरी से पहले लिखा गया; देखिए "पत्र: बी० एस० श्रोनिवास शास्त्रीको", ४-२-१९२० के पूर्व।