साहित्य परिषद्से मैं कहूँगा कि खेतों में पानी देनेवाले इन किसानोंके मुँहसे अप- शब्दोंका निकलना हटाएँ, नहीं तो हमारी अवनतिकी जिम्मेदारी साहित्य परिषद्के सिर- पर होगी। साहित्यके सेवकोंसे में पूछना चाहूँगा कि जनताका अधिकांश भाग कैसा है और आप उसके लिए क्या लिखेंगे? साहित्य परिषद्से भी मैं यही कहूँगा कि परि षद् जो कमियाँ हैं उन्हें वह हटाए, हटाए, हटाए।
लुईके मनमें पुस्तक लिखनेका विचार आया तो उसने अपने बच्चोंके लिए पुस्तकें लिखीं। उसके बच्चोंने तो उनका लाभ उठाया ही, आजके हमारे स्त्री, पुरुष तथा बालक भी उनसे लाभ उठा रहे हैं। मैं अपने साहित्य-लेखकोंसे ऐसा ही साहित्य चाहता हूँ। मैं उनसे बाणभट्टकी 'कादम्बरी” नहीं, तुलसीदासकी 'रामायण' माँगता हूँ। 'कादम्बरी' हमेशा रहेगी अथवा नहीं, इसके विषयमें मुझे शंका है, लेकिन तुलसीदासका दिया हुआ साहित्य तो स्थायी है। फिलहाल साहित्य हमें रोटी, घी और दूध ही दे; बादमें हम उसमें बादाम, पिस्ते आदि मिलाकर 'कादम्बरी' जैसा कुछ लिखेंगे ।
गुजरातकी निरीह जनता, माधुर्यसे ओतप्रोत जनता, जिसकी सज्जनताका पार नहीं है, जो अत्यधिक भोली है और जिसे ईश्वरमें अखण्ड विश्वास है, उस जनताकी उन्नति तभी होगी जब साहित्यसेवक किसानों, मजदूरों तथा ऐसे ही अन्य लोगोंके लिए काव्यरचना करेंगे, उनके लिए लिखेंगे।
मेरी हार्दिक कामना है कि हमारी जनता सत्य लिखने लगे, सत्य बोलने लगे और सत्यका आचरण करने लगे।
[गुजरातीसे]
नवजीवन, ४-४-१९२०
१००. पत्र:'टाइम्स ऑफ इंडिया'को
लँबर्नम रोड
गामदेवी
बम्बई
३ अप्रैल, १९२०
मैं निम्नलिखित तीन प्रस्ताव सत्याग्रह-सप्ताह के दौरान, अर्थात् ६, ९ और १३ अप्रैलको लोगों द्वारा अंगीकार किये जानेके खयालसे प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरा विचार है कि पहले और तीसरे प्रस्तावोंके बारेमें कोई दो राय नहीं होंगी। परन्तु
१. लुई कैरल, एलिसेस एडवेंचर्स इन वंडरलैण्डके रचयिता।
२. सातवीं शताब्दीमें लिखित प्रसिद्ध संस्कृत गथ-काव्य।
३. प्रस्तावोंके मूलपाठके लिए देखिए "सत्याग्रह सप्ताह", ३१-३-१९२०।