पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/३६५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३३
भाषण: गुजरात साहित्य परिषद् में

झूल रहा हो वहाँ सम्पादक बिना पसोपेशकें नहीं लिख सकता। साहित्य रसिकोंके सिर- पर भी प्रेस-अधिनियम झूल रहा है और इसलिए एक पंक्ति भी मुक्त भावसे नहीं लिखी जाती; और इसी कारण सत्यको जिस तरह प्रस्तुत करना चाहिए वह उस तरह प्रस्तुत नहीं किया जाता।

हिन्दुस्तान में इस समय संक्रान्तिकाल है। करोड़ों व्यक्तियोंको अनुभूति हो रही है कि हमारे यहाँ बड़-बड़े परिवर्तन होनेवाले हैं। हमारी दरिद्रावस्था मिट जायेगी और समृद्धि तथा वैभवका युग आयेगा, हमें अब सत्ययुगकी झाँकी मिलेगी। मैं स्थान- स्थानपर ऐसे उद्गार सुनता हूँ। कितने ही लोग यह समझ रहे हैं कि अब हिन्दुस्तानके इतिहासका एक नवीन पृष्ठ खुलने जा रहा है। यदि हिन्दुस्तानके इतिहासका नवीन पृष्ठ खुलनेवाला है तो हमें उसपर क्या लिखा हुआ मिलेगा? यदि उसमें हमें सुधार लिखे मिलें तब तो यह गलेमें पट्टा डालने के समान होगा और जैसे हम आज बैलकी तरह हाँके जाते हैं वैसे ही हाँके जायेंगे। इस समय साहित्यकी सेवा करनेवालोंसे में तो यही मागूंगा कि वे हमें ईश्वरसे मिलाएँ, सत्यके दर्शन करायें। हमारे साहित्य- सेवकोंको यह बात सिद्ध कर देनी चाहिए कि हिन्दुस्तान पापी नहीं है, वह धोखा- धड़ी करनेवाला देश नहीं है।

पोप---'इलियड' के रचयिता नहीं -ने दक्षिण प्रान्तकी जो सेवा की है वैसी सेवा किसी मद्रासीने भी नहीं की है। मैं तो प्रेम-रंगमें डूबा हुआ हूँ और प्रत्येक मनुष्य- का हृदय चुरा लेना चाहता हूँ। दक्षिण प्रान्तके भाइयोंका हृदय चुरानेके लिए मुझे उनकी भाषा सीखनी पड़ी। रेवरेंड पोपने जो रचनाएँ दी हैं उनमें से इस समय तो मैं कुछ उद्धृत नहीं कर सकता, लेकिन इतना अवश्य कहूँगा कि तमिलमें लिखी गई वे रचनाएँ---जिन्हें खेतमें पानी देता हुआ किसान भी दुहरा सकता है-- अलौकिक हैं। सूयौदयके पहले ही खेतमें पानी देना प्रारम्भ कर दिया जाता है। बाजरा, गेहूँ आदि सबपर ओसके मोती बिखरे हुए होते हैं। पेड़ोंके पत्तोंपरसे झरता हुआ पानी मोतीके समान लगता है। ये व्यक्ति, खेतमें पानी देनेवाले ये किसान उस समय कुछ ऐसा ही गाते हैं। मैं जब कोचरबमें रहता था तब खेतमें पानी देनेवाले किसानोंको देखता और उनकी बातें सुनता। लेकिन उनके मुंहसे तो अश्लील शब्द ही निकलते थे। इसका क्या कारण है ? इसका उत्तर में यहीं बैठे हुए श्री नरसिंहराव तथा अध्यक्ष महोदयसे पाना चाहता हूँ।

१. भारत सरकार अधिनियम १९१९ में सन्निविष्ट मॉण्टेग्यु-चैम्सफोर्ड सुधार।

२. डाक्टर जी० यू० पोप। इन्होंने तिरुक्कुरल और तिरुवाचकमका अंग्रेजीमें अनुवाद भी किया था।

३. अहमदाबादकी बाहरी सीमापर वसा हुआ एक गाँव । मई १९१५ में संस्थापित आश्रम पहले इस गाँवमें एक निजी भवनमें था।

४. नरसिंहराव भोलानाथ दिवेटिया, गुजराती कवि और साहित्यकार; एलफिन्स्टन कालेज, बम्बई के गुजरातीके प्रोफेसर।

५. आनन्दशंकर ध्रुव, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयके उप-कुलपति।