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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और इनकी अजेयताको समझें। सच तो यह है कि अगर हममें से सभी लोग अपने जीवनको सत्य और अहिंसा के चिरंतन नियमसे बाँधकर चलायें तो सविनय प्रति- रोध या किसी अन्य प्रकारके प्रतिरोधके लिए अवसर ही न आये। सविनय प्रतिरोध- की जरूरत तभी पड़ती है जब सत्यका पालन केवल थोड़ेसे लोग ही करते हों, और वे विरोधके बावजूद सत्यका पालन करनेका प्रयत्न करें। यह जानना कठिन है कि सत्य क्या है, कब इसका बचाव करने में सविनय प्रतिरोधकी सीमातक जाना चाहिए और सत्यका पालन करनेके प्रयत्नमें किस तरह हिंसा करनेसे बचा जाये। ऐसे में लोगों में एक सामान्य धर्मके रूप में सविनय अवज्ञाके प्रचारकी वांछनीयता विवादास्पद हो सकती है; पर जब कि हमने इस सप्ताहको अपने राष्ट्रीय जीवनके उत्थानके प्रयत्नोंमें लगानेका निश्चय किया है तो इस प्रयत्नम दल, वर्ग या धर्मका भेद-भाव किये बिना सभीके सहयोगकी अपेक्षा है।

६ और १३ तारीखको प्रार्थना और उपवासके अलावा हमें जलियाँवाला बाग- स्मारकके लिए चन्दा करना है। मुझे आशा है कि इस काम के लिए हर प्रान्त, जिला और शहर या गाँव में समुचित संगठन कर लिया जायेगा।

कार्यक्रमका तीसरा हिस्सा है इस सप्ताह के दौरान निर्धारित तारीखोंपर सारे भारतमें तीन सभाएँ करना। इनमें मैंने कुछ प्रस्ताव पास करनेका सुझाव दिया है। एक प्रस्ताव होगा रौलट अधिनियमके सम्बन्धमें, जिसके कारण सत्याग्रह आन्दोलन छेड़ा गया; और दूसरा होगा खिलाफतके सवालपर, जिसमें मुसलमानोंके साथ हिन्दुओंके सहयोग करनेके परिणामस्वरूप दोनों जातियोंकी एकताकी इमारत काफी मजबूत हो चली है, तीसरे प्रस्तावको जलियाँवाला बाग प्रस्ताव कहा जा सकता है। यह १३ तारीखको पास किया जाये और इसमें सरकारसे अनुरोध किया जाये कि वह ऐसे कदम उठाए जिससे सैनिक शासनके दौरान जो दुःखद घटनाएँ लोगोंने देखीं और जिनकी शुरूआत १३ तारीखके कत्लेआमके रूपमें सैनिक शासन लागू होनेसे पूर्व ही हो गई थी उनकी पुनरावृत्ति न हो पाये। मैं निम्नलिखित प्रस्ताव स्वीकार करनेका सुझाव देता हूँ:

६ अप्रैलके लिए

१...के नागरिकोंकी यह सभा अपनी इस दृढ़ मान्यताको लिखित रूपमें प्रकट करती है कि जबतक रौलट अधिनियम रद नहीं कर दिया जाता तबतक इस देश में शान्ति नहीं हो सकती और इसलिए यह सभा भारत सरकारसे अनुरोध करती है कि वह शीघ्रसे-शीघ्र एक विधेयक पेश करके इस अधिनियमको रद कर दे।

९ अप्रैलके लिए

२... के निवासी हिन्दुओं, मुसलमानों तथा अन्य लोगोंकी इस सभाको विश्वास है कि खिलाफतके प्रश्नका ऐसा निबटारा हो जायेगा जो भारतीय मुसलमानोंकी न्यायसंगत माँगों और महामहिम सम्राट्के मन्त्रियों द्वारा दिये गये गम्भीर वचनोंके

१. देखिए “६ अप्रैल और १३ अप्रैल ", १०-३-१९२०।