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९८.सत्याग्रह सप्ताह

इस पवित्र राष्ट्रीय सप्ताह के लिए निर्धारित कार्यक्रममें सबसे प्रमुख स्थान मैंन उपवास और प्रार्थनाको दिया है। हमारे राष्ट्रीय जीवनके उत्थानके लिए ये दोनों कितने जरूरी हैं, यह समझाने के लिए मैं काफी कुछ कह चुका हूँ। लेकिन प्रार्थनाकी बातपर एक मित्रको पत्र लिखते समय मुझे टेनिसनकी एक बहुत सुन्दर चीज हाथ लग गई। उसे में 'यंग इंडिया 'के पाठकोंके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। हो सकता है, इस तरह संयोगवश में उनके भीतर प्रार्थनाकी कार्य-साधकतामें निश्चित विश्वास उत्पन्न कर सकूँ। ये हैं वे अमूल्य पंक्तियाँ:

...प्रार्थनासे कितना-क्या हो जाता है।

इसकी संसार कल्पना नहीं कर सकता।

इसलिए रात और दिन मेरे लिए

किसी झरनेकी तरह मुक्त वाणीमें प्रार्थना करो।

क्योंकि मनुष्य यदि भगवान्‌को जानकर भी

अपने लिए और अपनेको मित्र माननेवालोंके लिए

हाथ उठाकर प्रभुसे दुआ न माँगे

तो वह उन भेड़ और बकरियोंसे

किस तरह बेहतर है

जो बिना सोचे अपनी देहको ही पुष्ट करते रहते हैं?

यह (प्रार्थना) ही है वह स्वर्ण मेखला

जिससे यह मण्डलाकार धरित्री

प्रभुके चरणोंमें बँधी हुई है।

अपने भारत-भ्रमणके दौरान मुझे सभी धर्मो और मतोंके लोगोंसे, हजारों स्त्री- पुरुषों और सैकड़ों विद्यार्थियोंसे मिलनेका सुयोग प्राप्त हुआ है। उनके साथ मैंने इतन उत्साहके साथ राष्ट्रीय समस्याओंकी चर्चा की है जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। और इस तमाम चर्चाके बाद मैंने यही देखा है कि अभी हममें अपने राष्ट्रीय व्यक्तित्व- की सजग पहचान नहीं आ पाई है। उस अवस्थाको प्राप्त करनेके लिए जिस अनु- शासनकी आवश्यकता है, वह अनुशासन हममें नहीं है, और मैं कहूँगा कि उपवास और प्रार्थना से बढ़कर और कोई साधन नहीं हैं जिनके जरिये हममें आवश्यक अनुशासन, आत्म- बलिदानकी भावना, विनयशीलता और दृढ़ इच्छा-शक्तिका आविर्भाव हो सके और इन गुणोंके बिना हम कोई वास्तविक प्रगति कर ही नहीं सकते। अतः मैं आशा करता हूँ कि लाखों-करोड़ों लोग सत्याग्रह सप्ताहका शुभारम्भ उपवास और प्रार्थनासे करेंगे।

इस सप्ताहके दौरान में सत्याग्रहके सविनय प्रतिरोधवाले हिस्सेपर जोर देना नहीं चाहता। मैं चाहूँगा कि इस सप्ताह में हम सत्य और अहिंसाका ही चिन्तन करें