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पत्र : एम० आर० जयकरको

की है, शाला' उन्होंने स्वयं खोली है और उसका खर्च बाहरसे मिलनेवाली मददसे चलता है। अपनी व्यक्तिगत पूँजी भी उन्होंने इस पाठशाला में लगा दी है। गत वर्ष जब उन्होंने मद्रासकी यात्रा की थी तब उन्हें प्रत्येक स्थानसे शान्तिनिकेतनके लिये दान दिया गया था। हमारी मान्यता है कि यदि कुछ ऐसी ही बात गुजरातमें भी हो तो बहुत अच्छा होगा। हमें उम्मीद है कि जहाँ-जहाँ वे पधारेंगे वहाँ-वहाँ उपर्युक्त बात भी ध्यानमें रखी जायेगी।

[गुजराती से]
नवजीवन, २८-३-१९२०

९५. पत्र : एम० आर० जयकरको

रविवार [२८ मार्च, १९२०]१

प्रिय श्री जयकर,

इस पत्रके साथ हमारी रिपोर्टके सम्बन्ध में एक तारका मसविदा भेज रहा हूँ । इस सम्बन्धमें और कुछ लिखनेकी जरूरत नहीं, क्योंकि मंगलवारको मैं आपसे मिलनेकी आशा कर रहा हूँ। मैं चाहूँगा आप जरा इस बातपर गौर करके देखिए कि हमारी रिपोर्टका समर्थन करनेके लिए आपका अकेले इंग्लैंड जाना कैसा रहेगा। मैं तो वहाँ कोई बड़ा शिष्टमण्डल भेजकर विशेष प्रदर्शन करनेके सर्वथा विरुद्ध हूँ। इससे मिलने-जुलनेके लिए कहीं आने-जानेमें शीघ्रता करना मुश्किल हो जायेगा और एकाग्रचित्त होकर काम करनेकी सुविधा भी नहीं रह जायेगी। इसके अलावा अधि- कारियोंको भी इससे झुंझलाहट ही होगी। यहाँ बिलकुल स्पष्ट बात कहना चाहता हूँ। मैं समझता हूँ कि वहाँ जानेके लिए सबसे अधिक उपयुक्त व्यक्ति में ही हूँ, परन्तु मेरा जाना असम्भव-सा है। मेरी नजरमें दूसरे नम्बरपर आप हैं क्योंकि मेरी ही तरह आपमें भी विद्यार्थीके गुण हैं और हमें एक लगनशील, अध्यवसायी और सन्तुलित मस्तिष्कवाले व्यक्तिकी जरूरत है। आप इसके लिए समय निकाल सकते हैं या नहीं, यह और बात है। हम दोनोंके अलावा जो व्यक्ति प्रभावकारी ढंगसे यह काम कर सकते हैं वे बस ये तीन हैं-- मालवीयजी, मोतीलालजी और श्री दास। इनमें कौन किससे अधिक अच्छा रहेगा, इसपर मैंने विचार नहीं किया है क्योंकि मैं स्वयं अनुभव करता हूँ कि मालवीयजीका भारतसे बाहर भेजा जाना असम्भव है। और मैं जानता

१. विश्वभारती; जिसकी नींव २३ दिसम्बर, १९१८ को रखी गई थी और जुलाई १९१९ से वहाँ काम शुरू हो गया था।

२. यह पत्र पंजाबके उपद्रवोंपर कांग्रेस रिपोर्टके २५ मार्च, १९२० को प्रकाशित होनेके बाद लिखा गया था, परन्तु जयकरजीकी बीमारीके कारण उन्हें इंग्लैंड जानेका विचार छोड़ देना पड़ा।

३. अनुमानतः ३० मार्चको; क्योंकि गांधीजी इस तारीखको बम्बई में थे।