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पत्र:राज़मियाँको

अडिग है, इसलिए मेरी यह निश्चित मान्यता है कि तुम्हें एक दिन आनन्दमय शान्ति- की प्राप्ति अवश्य होगी।

मैं बहुत उत्सुक हूँ कि तुम्हें जल्दीसे-जल्दी जहाज' मिल जाये। तुम्हें जिस एकान्तकी जरूरत है, वह समुद्र-यात्रामें मिलेगा और तुम्हारे घर तथा तुम्हारे पिता से वह आराम और साहचर्य प्राप्त होगा जो तुम भी चाहोगी।

अगर तुमने श्री बैंकरका ट्रंक अबतक नहीं लौटाया है तो उसे पार्सलसे मत भेजना। वह तुम्हारे वापस बम्बई आनेपर लौटाया जा सकता है। उसकी कोई जल्दी नहीं है।

सस्नेह,
[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड

तुम्हारा,

बापू

९३. पत्र: राजमियाँको

[सिंहगढ़]

२७ मार्च, १९२०

प्रिय राजमियाँ,

मैं खिलाफतके सवालपर डा० अंसारीको लिख चुका हूँ। लेकिन मुझे लगता है कि आपको भी लिखूं। हसरत मोहानीसे बातचीत होनेके बादसे में बहुत ज्यादा उद्विग्न हूँ। उनका खयाल है कि कोई भी व्यक्ति असहयोगमें विश्वास नहीं रखता; वह तो महज मुझे तुष्ट करनेके खयालसे अपना लिया गया है। अब किसी इतने महत्त्व पूर्ण मामले में तुष्ट रुष्ट करनेकी तो कोई बात ही नहीं होनी चाहिए, और मैं केवल अपनी तुष्टिके लिए कुछ भी नहीं चाहूँगा। इसके अलावा असहयोगकी सफलताके लिए जरूरी है कि उसे सब लोग पूरे उत्साह के साथ अपनायें । कोई भी महान् उद्देश्य,

१. डेनमार्क के लिए।

२. यद्यपि यह पत्र गांधीजीके निजी पत्र लिखनेके कागजपर, जिसपर उनका साबरमतीका पता छपा हुआ है, लिखा है; तथापि यह निश्चय ही सिंहगढ़से लिखा गया होगा, जहाँ गांधीजी २६ मार्चको पहुँच गये थे।

३. डा० मुख्तार अहमद अंसारी (१८८०-१९३६); एक राष्ट्रीय मुस्लिम नेता; १९२० में भारतीय मुस्लिम लीगके अध्यक्ष; १९२७-२८ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष।

४. मौलाना हसरत मोहानी, खिलाफत आन्दोलनके एक नेता, जो ब्रिटिश मालके बहिष्कारपर जोर दे रहे थे, और २४ नवम्बर, १९१९ को आयोजित खिलाफत सम्मेलन में गांधीजीके मुख्य विरोधी थे।