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पंजाबकै उपद्रवोंकै सम्बन्धमें कांग्रेसको रिपोर्ट

विमुक्ति प्रदान कर दी। वे घटनाओंके बाद भी स्वयं उनकी जाँचके लिए कभी पंजाब नहीं गये। विभिन्न सरकारी गवाहोंने जितना भी कुछ स्वीकार किया है, वह सब उनको कमसे-कम मईमें तो मालूम ही हो गया होगा, फिर भी उन्होंने जलियाँवाला बागके हत्याकाण्डकी या मार्शल लॉके तहत किये गये कारनामोंकी पूरी-पूरी जानकारी न तो जनताको दी और न शाही सरकारको। श्री सी० एफ० एन्ड्रयूज-जैसे भले और ख्यात- नामा अंग्रेज ईसाईको, जिनकी सत्य-निष्ठापर कोई अँगुली नहीं उठाई जा सकती, पंजाब जानेसे रोकने में भी वाइसराय महोदयका हाथ रहा, जबकि श्री एन्ड्रयूज वहां केवल सचाईका पता लगाने जा रहे थे, उत्तेजना फैलाने नहीं। और इन वाइसराय महोदयने ही पंजाब सरकारके मुख्य सचिव श्री टॉमसनको तथ्योंको तोड़-मरोड़कर पेश करने और माननीय पंडित मदनमोहन मालवीयका अपमान करनेकी अनुमति दे दी थी उन्हीं पंडित मदनमोहन मालवीयका अपमान करनेकी, जिनके परिषद् दिये गये लगभग सभी वक्तव्य अब खुद सरकारी गवाहों के बयानोंसे सही सिद्ध हो चुके हैं । वाइसराय महोदयने आम जनताको भावनाओंके प्रति इतनी हृदयहीनता दिखलाई, उसकी उपेक्षा की और सूझबूझका इतना अपरावपूर्ण अभाव प्रदर्शित किया कि जबतक स्वयं भारत-मंत्रीने उनको विवश नहीं किया तबतक उन्होंने मार्शल लॉ न्यायाधिकरणों द्वारा दिये गये मृत्यु-दण्डोंको मुल्तवी नहीं किया था। उन्होंने माननीय पंडित मदनमोहन मालवीय-जैसे परिषद् के जिम्मेदार सदस्यको सदनमें प्रश्न नहीं पूछने दिये--इससे मालूम पड़ता है कि उन्होंने सही बातें न जाननेका निश्चय ही कर लिया था। वे स्थानीय तौरपर जाँचके लिए पंजाब जानेको राजी नहीं हुए। रोलट कानूनके खिलाफ चलने- बाले आन्दोलनके प्रति उन्होंने जो रुख अपनाया था हम यहाँ उसकी आलोचना नहीं करेंगे। लेकिन जन-सुरक्षा की दृष्टि से हम वाइसराय महोदयकी उस अक्षमताका उल्लेख किये बिना नहीं रह सकते जो उन्होंने अप्रैल महीने में उत्पन्न परिस्थितिको समझने और उसके सम्बन्ध में कार्रवाई करनेमें दिखलाई भी। इसीलिए यद्यपि हम यह नहीं कहते कि वाइसराय महोदयने सम्राट् द्वारा उनकी अधीनतामें रखी गई प्रजाके हितोंकी जान-बूझकर उपेक्षा की है, लेकिन हमें खेदपूर्वक कहना पड़ता है कि बाइसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड महोदयको जिस पदपर बैठाया गया था उन्होंने अपने आपको उसके अयोग्य सिद्ध कर दिया है और हमारी राय है कि उन्हें वापस बुलाया जाना चाहिए। हम अपने अन्य निष्कर्षोका सार नीचे बे रहे हैं:

१. सर माइकेल ओ'डायरने शिक्षित वर्गोंके प्रति जान-बूझकर जिस घृणा और अविश्वासका प्रदर्शन किया था और युद्धके दौरान रंगरूटोंकी भरती और चन्दोंकी वसूलीके लिए जो क्रूरतापूर्ण और जबरिया तरीके अपनाये थे और उन्होंने लोकमतका दमन करनेके लिए जिस प्रकार स्थानीय समाचारपत्रोंका गला घोटा था और पंजाबसे

१. श्री एन्दयूजको लाहौर जाते हुए अमृतसर रेलवे स्टेशनपर गाड़ीसे उतार लिया गया था और नहाँ कई घंटोंतक नजरबन्द रखनेके बाद अन्तमें पंजाबसे बाहर कर दिया गया था।

२. शाही विधान परिषद्।