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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम उसके लिए ऐसा असम्भव-सा कोई मानदण्ड निर्धारित नहीं कर सकते,यह हम मानते हैं। कोई भी अधिकारी अपने अच्छेसे-अच्छे इरादोंके बावजूद उत्तेजना और संकटके कालमें गलतियाँ कर सकता है। और हम यह भी मानते हैं कि जब देशके प्रशासनमें बड़े महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होनेवाले हैं, जब सम्राट्ने अधिकारियों और जनतासे सहयोगकी अपील की है, तब ऐसी परिस्थितिमें हमें ऐसी कोई बात नहीं कहनी चाहिए जो प्रगतिके आड़े आती हो।

परन्तु हम महसूस करते हैं कि जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा एक बड़े पैमानेपर किये गये अत्याचारपूर्ण अन्यायको अनदेखा नहीं किया जा सकता; ठीक उसी प्रकार जैसे कि भविष्य चाहे जितना सुन्दर हो पर जनताके अपराधपूर्ण कृत्योंको अनदेखा नहीं किया जा सकेगा । हमारी तो राय यह है कि अधिकारियों द्वारा की गई ज्यादतियों और साथ ही जनता द्वारा की गई ज्यादतियोंका भी निराकरण करना आज पहलेसे कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। सुधारोंको कार्यरूप देना और भारत द्वारा अपना लक्ष्य यथाशीघ्र प्राप्त करना----ये दोनों ही बातें लगभग असम्भव हो जायेंगी; यदि जनता और अधिकारी लोग दोनों ही पूरी नेकनीयतीके साथ, स्वस्थ मस्तिष्क से इनके लिए प्रयत्न नहीं करेंगे। इसीलिए जब हम कहते हैं कि ज्यादतियाँ करनेवाले अधिकारियोंपर कानूनी कार्रवाई की जाये, तो उसके पीछे कोई बदलेकी भावना नहीं है; बल्कि उसका उद्देश्य यह है कि देशके प्रशासनको शुद्ध बनाने के लिए उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार और अन्यायको दूर किया जाये। इसीलिए जहाँ हमारा विश्वास है कि अमृतसर और अन्य स्थानोंपर भीड़ द्वारा की गई ज्यादतियाँ गलत और निन्दनीय थीं, वहीं हमारा यह विश्वास भी है कि जनताको अधिकारियोंके अत्याचारोंके रूप में जो सजा मिली वह उसके अनुचित कृत्योंके अनुपातमें कहीं अधिक थी।

हमारा विश्वास है कि यदि श्री गांधीको दिल्ली और पंजाबके रास्तेमें गिरफ्तार न किया गया होता और यदि डा० किचलू तथा डा० सत्यपालको गिरफ्तार और निर्वा- सित न किया गया होता तो निर्दोष अंग्रेजोंको अपनी जानसे हाथ न धोना पड़ता और बहुमूल्य सम्पत्ति तथा ईसाई गिरजोंका विनाश न होता। पंजाब सरकारके ये दोनों कदम सर्वथा अनावश्यक थे। इन दोनों कदमोंने जनताके दिलोंमें पहलेसे ही जमा गुबारकी बारूदमें आग दिखानेका काम किया।

हमने पंजाबके विभिन्न जिलोंकी घटनाओंकी ब्योरेवार विवेचना प्रस्तुत करते हुए भारत सरकारके बारेमें कुछ भी कहनेसे अपनेको रोका है। लेकिन इस बातको न तो अनदेखा किया जा सकता है और न मामूली कहकर टाला ही जा सकता है कि केन्द्रीय सरकारने अधिकारियोंकी इन ज्यादतियोंको सक्रिय रूपसे सहयोग भले ही न दिया हो,लेकिन कमसे-कम सरकारी तौरपर उनको रोकनेके बारेमें निष्क्रियता तो दिखलाई ही है। वाइसराय महोदयने जनताकी बातको सुनने और परखनेका कभी कष्ट नहीं किया। उन्होंने व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा भेजे गये तारों और पत्रोंकी उपेक्षा की। उन्होंने कोई भी जाँच कराये बिना ही पंजाब सरकार द्वारा उठाये गये कदमोंका समर्थन कर दिया। उन्होंने अशोभनीय जल्दबाजी के साथ अधिकारियोंको दण्ड