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पंजाबकी चिट्ठी-१०

गिरमिटियोंकी मदद से ढरों गन्ना बोया जाता है। उसके द्वारा आस्ट्रेलियाकी सेन्ट्रल शुगर कम्पनीने करोड़ों कमाये हैं। गिरमिट-प्रथा कितनी बुरी है, इसका भाई एन्ड्रयूजने[१] हूबहू चित्रण किया है। लेकिन वाइसराय महोदयके कड़े रवैयेके कारण, अब तो उन गिरमिटियोंकी गिरमिट भी समाप्त हो गई है जिनका समय अभी पूरा नहीं हुआ था।[२]

ब्रिटिश गियाना, दक्षिण अमरीकाका एक भाग है। यह भूमध्य रेखाके दक्षिणमें स्थित है। वहाँ भी गन्नेकी फसल खूब होती है और एक एकड़में तीन टनतक खाँड निकल सकती है। भारतमें एक एकड़में एक टन खाँड तैयार होती है। फिलहाल खाँड-समिति इस प्रश्नकी जांच कर रही है। इस समितिके एक प्रख्यात सदस्य श्री बरजोरजी पादशाह भी है; इसलिए यह माना जा सकता है कि उसका परिणाम कुछ अच्छा निकलेगा। उनके कथनानुसार फिलहाल तो सम्भव है कि हमें गन्नेकी फसलसे नुकसान उठाना पड़ रहा हो। आयातकी गई खाँड हमें सस्ती पड़ती है और भारतमें खाँडका उत्पादन न करनेसे किसीकी रोजी भी नहीं मारी जाती। यह बात मैंने जैसी सुनी है वैसी ही यहाँ दे रहा हूँ। मैं यह भी नहीं कह सकता कि श्री पादशाहके इस सम्बन्धमें ये अन्तिम निष्कर्ष है और न मैं फिलहाल इस सम्बन्धमें कुछ चर्चा ही करना चाहता हूँ। ब्रिटिश गियानाकी बात करते हुए प्रसंगतः ही यह खबर दे रहा हूँ।

खाँडके व्यापारमें हमारी स्थिति चाहे कैसी ही क्यों न हो लेकिन ब्रिटिश गियाना और फीजी तो सिर्फ खाँडके व्यापारसे ही समृद्ध हुए हैं।

ब्रिटिश गियानामें भी गिरमिटिया जाते थे। वहाँ कोई समझदार व्यक्ति नहीं गया इसलिए वहाँके गिरमिटियोंके सम्बन्धमें हम कुछ नहीं जानते। वहाँ भी अब गिरमिटियोंका जाना बन्द हो गया है।

इसलिए दोनों देशोंके सामने अपनी सम्पन्नताको बनाये रखने का भारी प्रश्न खड़ा हो गया है। यदि उन्हें और भारतीय मजदूर न मिले तो उनके लिए स्थिति चिन्ताजनक हो जायेगी।

अंग्रेज मजदूरोंसे काम नहीं लिया जा सकता। इन देशोंमें अंग्रेज घर बनाकर नहीं रह सकते। वहाँकी आबोहवा उन्हें माफिक नहीं आती इसलिए यदि भारतीय मजदूर न मिले तो उन्हें चीन अथवा ऐसे ही अन्य मुल्कोंपर दृष्टिपात करना पड़ेगा। भारतीयोंके समान सरलता और नम्रता चीनके मजदूरोंमें नहीं है—ऐसा लगता है कि उन्हें इस बातका [पर्याप्त] अनुभव है कि चीनी मजदूरोंमें भारतीयों-जैसी सरलता और नम्रता नहीं है।

ये दोनों शिष्टमण्डल भारत सरकार और प्रजापक्षके लोगोंके साथ सलाह-मशविरा करने तथा स्वाधीन भारतीय मजदूर इन दोनों स्थानोंमें किस प्रकार जा सकते है, यह जानने और वैसा प्रबन्ध करनेके लिए आये हैं। इन दोनों शिष्टमण्डलोंसे मेरी

  1. १. सी० एफ० एन्ड्रयूज (१८७१-१९४०); ब्रिटिश मिशनरी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और गांधीजीके एक निकट सहयोगी; दीनबन्धुके नामसे प्रसिद्ध।
  2. २. फीजी सरकारने २ जनवरी, १९२० से गिरमिटको रद कर दिया था।