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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमने अभी किया है। लेकिन इतनेपर भी यदि उन्होंने अपने नीचेके अधिकारियोंको बन्दूकोंका मनमाना इस्तेमाल न करनेके निश्चित आदेश दे दिये होते तो बात न बिग- ड़ती। लेकिन वे तो क्रोधोन्मत्त हो रहे थे, फिर उनसे किसी संयत कार्रवाईकी आशा कैसे की जा सकती थी । अमृतसरकी अविवेकपूर्ण गोलीबारीने जनताके धैर्यका बाँध तोड़ दिया। जन-समूह क्रोधसे उन्मत्त हो उठा और उसी आवेशमें उसने आगजनी, हत्याएँ और बर्बादी शुरू कर दी और तीन घंटोंमें अपना सारा गुस्सा उतार लिया । हम जिन अन्य स्थानोंका उल्लेख कर आये हैं, उन स्थानोंके लोगोंको भी छूत लगी और उन्होंने भी वही किया जो अमृतसरके लोगोंने किया था । लेकिन सौभाग्यकी बात हैं और हम यह कहनेकी स्थिति में हैं कि कसूरको छोड़कर अन्य किसी भी स्थानपर जन-समूहने किसीकी जान नहीं ली।

यह स्थिति बगावतकी थी या युद्ध ठाननेकी? क्या स्थिति ऐसी थी जिसे असं- निक प्रशासन अपनी ही शक्तिके बलपर और आवश्यकता पड़नेपर कहीं-कहीं सेनाकी सहायता लेकर भी काबू नहीं कर सकता था? क्या स्थिति ऐसी थी कि कानूनका गला घोटना जरूरी हो गया था? अलग-अलग स्थानोंकी घटनाओंका वर्णन करते हुए हम इस प्रश्नका उत्तर दे चुके हैं, और इस पूरी विवेचनासे बार-बार यही निष्कर्ष निकलता कि हंटर समितिके सामने प्रस्तुत और प्रकाशित साक्ष्यके अनुसार, और हमारे पास जो साक्ष्य मौजूद है उसके अनुसार भी, मार्शल लॉकी घोषणा करनेकी कतई आव- श्यकता नहीं थी। लॉर्ड हंटरकी समितिके सामने जो गोपनीय साक्ष्य प्रस्तुत किया गया था वह यदि असाधारण रूपसे स्पष्ट, सटीक और प्रचुर हो तभी मार्शल लॉकी घोषणाका कुछ औचित्य सिद्ध किया जा सकता है।

बगावत या युद्धकी स्थिति उत्पन्न होनेकी जो कहानी गढ़ी गई थी वह हंटर समिति के सामने बिलकुल भी नहीं टिक सकी । तथाकथित षड्यंत्रके पीछे पंजाबसे बाहर किसी संगठनके अस्तित्वका कोई सबूत नहीं मिला। इसके विपरीत, सर माइकेलके एक सबसे विश्वस्त सहायक कर्नल ओ'ब्रायनको हंटर समितिके सामने स्वीकार करना पड़ा कि बगावतकी कहानी के पक्षमें उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं था, उसकी कल्पना केवल अटकलपर आधारित थी और यह भी कि उन्होंने गुजरांवालाके नेताओंकी गिरफ्तारी भी महज सुनी-सुनाई बातोंके आधारपर कराई थी। उन्होंने स्वीकार किया कि नेताओं- का हिंसाके साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध जोड़नेका कोई आधार उनके पास नहीं था, पर यदि गुजरांवालामें कोई हिंसा हो तो उसके लिए वे इन नेताओंको ही जिम्मेदार ठहराना चाहते थे। [ सरकारकी ओरसे प्रस्तुत किए गये ] अन्य गवाह भी कोई ज्यादा अच्छे उत्तर नहीं दे सके। उनके उत्तरोंसे यही प्रकट हुआ कि वे कार्यों और घटनाओंका ठीक-ठीक मूल्यांकन करनेमें सर्वथा अक्षम थे।

सच तो यह है कि रौलट कानूनके खिलाफ होनेवाले आन्दोलनको एक शरारत सिद्ध करनेके लिए, जैसा कि सर माइकेलका दावा था, यह जरूरी हो गया था कि उसके पीछे एक व्यापक षड्यंत्रका अस्तित्व सिद्ध किया जाये । षड्यंत्रकी कल्पना करते ही उनको उसपर विश्वास भी हो गया, और उन्हें नेताओंके हर भाषणमें राजद्रोह,