पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/३४७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१५
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

पड़ गया था, उसका पूरा-पूरा ध्यान रखें और काफी गुंजाइश रखकर उनके कृत्योंके बारेमें कोई राय बनायें। लेकिन तब भी हमारा निष्कर्ष यही है कि जिस चीजको उपद्रव कहा गया है, उसका दमन करनेके लिए अधिकारियोंने जरूरतसे ज्यादा सख्त तरीके अपनाये।

इन उपद्रवोंका स्वरूप क्या था और ये कैसे शुरू हुए ? इनका स्वरूप तो बस यही था कि यत्र-तत्र कुछ आगजनीकी घटनाएँ हुईं जिनका परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं था; कुछ निर्दोष यूरोपीय मारे गये; टेलीग्राफके कुछ तार काटे गये; बिना किसी खास प्रयत्न या योजना के एक-दो पुल जलाये गये; और एक-दो जगह ट्रेनोंको पटरियोंसे उतारा गया। यह बात स्वीकार की गई है कि इन घटनाओंका रूप सार्वदेशिक नहीं था; जिन लोगोंके पास शस्त्रास्त्र थे, उन्होंने उपद्रवोंमें प्रत्यक्ष या परोक्ष, किसी भी रूपमें कोई भाग नहीं लिया; किसानोंके विशाल वर्गने भी इन हिंसात्मक कार्रवाइयों में कोई हाथ नहीं बँटाया; और सरकारी साक्ष्यके अनुसार भी पंजाबकी कुल दो करोड़की आबादी में से सिर्फ साढ़े चार लाख लोगोंको ही इन उपद्रवोंसे सम्वद्ध बताया जाता है। हमारे साक्ष्यके मुताबिक केवल अमृतसर, कसूर, गुजरांवाला, वजीराबाद, निजामाबाद, हाफिजा- बाद, मोमन, धबनसिंह, चूहड़खाना, खेमकरन, पट्टी और मलकवालमें हिंसात्मक कार्रवाइयाँ की गईं। इन स्थानोंकी कुल आबादी लगभग सवा दो लाख है। लेकिन ध्यान रहे कि हमारे और हंटर कमेटी, दोनोंके सामने प्रस्तुत साक्ष्यसे और कई मुकदमोंके विवरणसे प्राप्त जानकारीसे भी यह बिलकुल स्पष्ट है कि इस सवा दो लाखकी आबादीके भी एक बहुत छोटे अंशने इन तथाकथित उपद्रवोंमें सचमुच कोई भाग लिया था। कुल मिलाकर चार यूरोपीयोंकी जानें गईं। जन-समूहके इस कारनामेकी जितनी भी निन्दा की जाये थोड़ी होगी।

लेकिन यह कैसे हुआ कि ये भारतीय लोग, जो सामान्यतया बढ़े शान्ति प्रिय होते हैं, एकाएक सरकारी सम्पत्तिमें आग लगाने और हत्याएँ करनेपर उतारू हो गये ? हमने इसका उत्तर देनेका प्रयास किया है। सर माइकेल ओ'डायरने यहांकी जनताकी लोक-विश्रुत धैर्यशीलताको एक अत्यन्त ही अनुचित, असहनीय स्थितिमें डाल दिया। उन्होंने शिक्षित भारतीय तबकेकी बुराई करके, रंगरूटोंकी भरती और युद्धके कर्ज तथा अन्य चन्दोंकी वसूली के लिए मनमाने तरीके अपनाकर और सार्वजनिक समा- चारपत्रों इत्यादिका गला घोटकर जनताके मनमें बेहद नाराजी पैदा कर दी थी । इस तरह उन्होंने विस्फोटका सारा सामान जुटा दिया था । श्री गांधी और डा० किचलू तथा डा० सत्यपालके निष्कासनकी उनकी सर्वथा अनुचित कार्रवाईने बारूद में चिनगारीका काम किया । रौलट कानूनके खिलाफ ६ अप्रैलको होनेवाले शान्तिपूर्ण प्रदर्शनको रोकनेकी उनकी सारी कोशिशें जब विफल हो गईं तो उन्होंने अपने क्षोभको एक स्वतंत्र और अनुशासित ढंगसे व्यक्त करने के लिए आकुल जनताकी भावनाओंको कुचलनेका एक जोरदार प्रयत्न करनेकी ठान ली। सर माइकेलते जन-भावनाके इस स्वस्थ पौधेको एक ऐसा विषैला झंखाड़ समझा, जिसे हर हालत में उखाड़ फेंकना हो, और फलतः उन्होंने निष्कासनकी वह पागलपनभरी कार्रवाई की, जिसका उल्लेख