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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

गुजरातमें दो गुट हैं। इनमें से एक गुटसे स्थानीय अधिकारियोंका भी सम्बन्ध है। दूसरेके नेता हैं--सेठ चिरागदीन । वे एक प्रमुख नागरिक हैं और अभी हालतक ऑनेररी मजिस्ट्रेट तथा म्युनिसिपल कमिश्नर भी थे। इसलिए लगता है, अधिकारियोंवाले गुटने अपने विरोधियोंके वलको तोड़ देनेकी ठान ली थी। फलतः, गुजरातके एक बैरिस्टर श्री हरगोपाल और कुछ अन्य लोगोंको गिरफ्तार करके लम्बे असतक नजरबन्द रखा गया। मार्शल लॉ न्यायाधिकरणने उनके मामलेकी सुनवाई की और उनको बिलकुल निर्दोष करार दिया। न्यायाधीशने उनको बिल्कुल बरी करते हुए टीका की कि अभियोक्ता-पक्षकी ओरसे गवाही देनेवाले अधिकारियोंने झूठी गवाहियाँ दी हैं। लाला रामचन्द टंडनने युद्धके दौरान अधिकारियोंकी बड़ी सहायता की थी। उनके पास कई ऐसे कामोंके लिए सरकारी सनदें भी मौजूद हैं। लेकिन उनको भी इस तरह तंग किया गया। संभ्रान्त वकीलों और अन्य कुछ लोगोंके घरोंकी बिलकुल अकारण ही तलाशियाँ ली गईं।

सेठ चिरागदीनको मजिस्ट्रेट और कमिश्नरके पदोंसे हटा दिया गया। उनके पास वाइसरायसे लेकर निचले अधिकारियोंतक की कई सनदें मौजूद हैं । उनको कैंसरे-हिन्द पदक भी दिया गया था। उन्होंने खुद अपनी कोशिशसे सरकारको २०० रंगरूट दिये थे। गुजरातके सम्बन्धमें हमने जो बयान चुने हैं उनपर गौर फरमाया जाये । श्री हरगोपालने झूठी गवाहियोंके लिए अधिकारियोंपर मुकदमा चलानेकी अनुमति मांगी, लेकिन उसकी मंजूरी नहीं दी गई।

जो दूसरी तकलीफें अन्य जिलोंके लोगोंको झेलनी पड़ीं वही तकलीफें गुजरातके लोगोंको भी झेलनी पड़ीं। यहाँ यह भी बतला देना चाहिए कि गुजरात में किसी तरहकी कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं रही है। यहाँ तो जिला कांग्रेस कमेटीतक नहीं बनी है।

गुजरातपर बिना किसी औचित्यके दाण्डिक पुलिस बैठा दी गई है। इसपर ४२,००० रुपयेका कर लगाया गया है, जिसकी वसूली छः किस्तों की जायेगी। पहली किस्त वसूली जा चुकी है। और उसकी एक विचित्रता यह रही कि किस्तकी कुल राशिका एक-चौथाई हिस्सा सिर्फ लाला राम चन्द टंडनसे और एक-चौथाई हिस्सा कुछ वकीलोंसे वसूल किया गया है। इस करकी वसूली भी हमारे खयालसे उतनी ही अन्यायपूर्ण है जितना कि यह कर खुद अपने आपमें है।

जलालपुर जट्टाँ

यह गुजरात जिलेमें गुजरातसे करीब आठ मीलकी दूरीपर स्थित एक छोटा-सा गाँव है। यह बुनाईका एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।

यहाँ ६ अप्रैलको कोई हड़ताल नहीं हुई। लेकिन १५ अप्रैलको हड़ताल हुई, जिसे सहानुभूति-सूचक हड़ताल ही कहा जा सकता है। जन-समूहने जान-मालको कहीं कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। एक जुलूस निकाला गया, जिसमें सभी लोग शामिल थे। १५ या १६ तारीखको रातमें किसीने टेलीग्राफका एक तार काटा।