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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तख्त लो, या तख्ता मिलेगा”। यदि गवाह अधिकारियोंकी इच्छाके मुताबिक गवाही दे देता तो उसको रिहा कर दिया जाता और यदि न देता तो उसको जेलमें वापस डाल दिया जाता। (बयान ५३०, बयान ५१८, ५२२, ५२५, ५३१, ५३३, ५३६, ५३७ और ५४८ भी देखिए।)

गुजरात

गुजरात एक ऐतिहासिक स्थान है। सिख युद्धके दौरान गुजरातकी प्रसिद्ध लड़ाई यहीं हुई थी। इसकी आबादी लगभग २०,००० है । यह मुख्य लाइनपर वजीराबाद से ९ मील दूर एक रेलवे स्टेशन है।

यहाँ ६ अप्रैलको हड़ताल की कोशिश की गई थी लेकिन सनातन धर्म सभाके अध्यक्ष और स्थानीय व्यापारी लाला रामचन्द टंडनके प्रयत्नसे वह रुक गई। लेकिन १३ ता० को लाहौरमें पढ़नेवाले गुजरातके कुछ विद्यार्थी और बैसाखी मेलेके सिलसिलेमें वजीराबादसे लौटनेवाले कुछ अन्य लोग ११ बजे रातकी ट्रेनसे गुजरात पहुँचे। उन्होंने ट्रेनसे उतर एक जुलूस-सा बना लिया और रौलट अधिनियमके खिलाफ नारे लगाते हुए शहरमें प्रवेश किया। सुबह उन्होंने लाहौर तथा अन्य स्थानोंके काण्डोंके समाचार जनताको सुनाये और दुकानदारोंको दुकानें बन्द करनेके लिए तैयार कर लिया। हड़ताल हो गई। इसपर अधिकारियोंने म्युनिसिपल कमिश्नरों (सदस्यों) को बुलाया और उनसे अपने- अपने वार्डोपर नजर रखने के लिए कहा। तदनुसार उन्होंने अपने मित्रोंकी सहायतासे १४ की रातको अपने-अपने वार्डोंमें पूरी चौकसी रखी, अतः रास्ते में कोई गड़बड़ी नहीं हो पाई। १५ तारीखको मिशन स्कूलके लड़के अपने स्कूलकी ओर चले और रास्ते में कुछ और लोग भी साथ हो गये। सबने स्कूल पहुँचकर हेडमास्टरसे स्कूल बन्द करने के लिए कहा। हेडमास्टरने स्कूल बन्द करनेसे इनकार कर दिया और इतना ही नहीं, कहते हैं उन्होंने कुछ लड़कोंको बेंतसे पीटा भी । इसपर लड़कोंने स्कूलपर पथराव किया और कुछ खिड़कियोंके काँच तोड़ डाले। उन्होंने स्टेशनको भी इसी तरहका नुकसान पहुँचाया। कुछ कागज-पत्र जला दिये, पर अभी वे इतना ही कर पाये थे, कि गोलियाँ चलने लगीं और वे तितर-बितर हो गये। कोई हताहत नहीं हुआ।

यहाँ इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। हड़तालमें और उसके बादकी घटनाओंमें भी किसी जिम्मेदार आदमीने भाग नहीं लिया था। फिर भी १९ अप्रैलको गुजरातमें मार्शल लॉ लागू कर दिया गया । यहाँके डिप्टी कमिश्नर श्री विलियमसनको मार्शल लॉके बारेमें कोई जानकारी नहीं थी। वे चाहते भी नहीं थे कि मार्शल लॉ लागू किया जाये। और जब उनको मार्शल लॉकी घोषणाका तार मिला तो उन्होंने पूछा भी था कि क्या अधिकारियोंका मतलब पंजाब प्रान्तके गुजरात जिलेसे है। उनका खयाल था कि अधिकारियोंने बम्बई प्रेसीडेन्सीके गुजरातपर मार्शल लॉ लगाया होगा। लेकिन वह उनका भ्रम था, और जिस गुजरातने ऐसी कोई हरकत नहीं की थी जिसके कारण उसे इस नियमका शिकार बनाया जाता, उसी गुजरातको सेनाके हाथों सौंप दिया गया और जूनमें मार्शल लॉ उठा लिये जानेतक वह सेनाके ही अधीन रहा।

१. १८४९ में ।