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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

लेकिन यह गवाह झुका नहीं। सजा सुनानेके बाद, कैदियोंको लाहौर ले जाया गया। गवाह कहता है:

करीब ११ बजे, कड़कड़ाती धूपमें हमें हथकड़ियाँ-बेड़ियाँ पहनाये हुए जेलसे स्टेशनतक पैदल चलाया गया। बेड़ियोंके कारण हमारे घुटने जख्मी हो गये थे।(बयान ५२१, पृष्ठ ६६४)

इन गिरफ्तारशुदा लोगोंमें लाला बोधराज भी थे। वे जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, लायलपुरमें पंजाब नेशनल बैंक लिमिटेडके निदेशक और डी० एम० ए० एस० हाईस्कूल कमेटी के उपाध्यक्ष हैं और पिछले बाईस वर्षोंसे वकालत करते आ रहे हैं। गुजरांवाला में तो नहीं पर यहाँके कैदियोंको बतला दिया गया कि उनपर किन अभियोगोंके लिए मुकदमे चलाये जायेंगे। उनपर भारतीय दण्ड संहिताके खण्ड १४३ के अन्तर्गत अभियोग लगाये गये थे। यह खण्ड गैरकानूनी सभाओं इत्यादिसे सम्बन्धित है। इसलिए उन्होंने जमानतोंके लिए प्रार्थनापत्र दिये [ क्योंकि इस खंडके अन्तर्गत जमानतकी व्यवस्था है। ] लेकिन उनके प्रार्थनापत्र इस आधारपर ठुकरा दिये गये कि उनपर कुछ-और अभियोग लगाने की बात भी सोची जा रही है। नजरबन्दीके दौरान उनके साथ जैसा सलूक किया गया उसका वर्णन करते हुए गवाहने बतलाया है कि यद्यपि हवालाती कैदियोंको अपने घरसे खाना मँगानेकी छूट रहती है, लेकिन जब उन्होंने घरसे खाना मँगानेकी इजाजतके लिए प्रार्थनापत्र दिया तो उसे सिर्फ ठुकरा ही नहीं दिया गया बल्कि यह फबती भी कसी गई : चूंकि वे उपवास भी कर सकते हैं, इसलिए उनको जेलके खानेसे सन्तुष्ट रहना चाहिए।" मुकदमेके दौरान उनको १० बजे सुबहसे ७ बजे शामतक खड़ा रखा जाता था। इसपर उन्होंने अनुरोध किया कि दिनभर में उनको एक बार तो अपने खर्च से जलपान करनेकी अनुमति दी जाये। पहले दिन तो इसकी इजाजत मिल गई. लेकिन बादमें उनसे कह दिया गया कि उनको इसका कोई अधिकार नहीं । मजिस्ट्रेटने मुक- दमेकी कार्रवाई शुरू होने से पहले और उसके बाद भी उनको मुकदमेके कागजात देखनेकी अनुमति नहीं दी; फिर भी उनसे सफाईके गवाहोंके नाम देनेके लिए कहा गया । (बयान ५१७) लाला अमीरचन्द' १३ अप्रैलको अपने घरेलू कामसे लायलपुर आये थे। वे ५ अप्रैलको कलकत्तासे लाहौर पहुँचे थे । उनको भी गिरफ्तार कर लिया गया। अधिकारियोंके कहनेपर मुकदमेकी तारीख बढ़ती रही। अन्तमें १४ जूनकी तारीख मुकर्रर की गई, लेकिन बिना किसी सूचनाके अचानक ही तारीख घटा दी गई और ५ जूनको ही मुकदमेकी सुनवाई हो गई। गवाहका कहना है कि उनको अपने गवाह पेश करनेका मौका दिये बगैर ही सजा सुना दी गई। ६ तारीखको उनपर नये अभियोग लगाये गये और तीन महीने के कारावासकी सजा दे दी गई, और १८ जूनको उन्हें दो वर्षके कारावासकी सजा सुना दी गई। लेफ्टिनेन्ट गवर्नरने अन्य कई लोगोंके साथ उनकी सजापर भी पुनविचार किया। फलस्वरूप उन्हें १८ सितम्बरको रिहा कर दिया गया। उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और मुचलका देनेके लिए कहा गया; पर

१. अनारकली, लाहौरके 'स्वदेशी स्टोर्स' के मालिक।