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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिस दिन यह घटना घटी उस दिन चार फैक्टरियाँ काम कर रही थीं।उनमें से एक भूसेके ढेरके बिल्कुल ही करीब थी। जाड़के दिनोंमें फैक्टरियाँ चलनेसे भूसेमें आग नहीं लगी, लेकिन अप्रैल महीना शुरू होनेके बाद फैक्टरियोंकी चिमनीसे निकलनेवाली चिनगारियोंसे फैक्टरियोंके अहातेमें जमा रुईके ढेरोंमें कई बार आग लग चुकी है। हालांकि दूरीके कारण सम्भावना कम है, लेकिन हो सकता है कि भूसेमें आग लगनेका कारण यही रहा हो।

मुझे ठीक-ठीक कुछ पता नहीं चल सका, केवल एक सन्देह ही मनमें बना रहा कि इस क्षेत्रमें होनेवाले उपद्रव और लोगोंके गैरकानूनी जमावके फलस्वरूप ही शायद यह नुकसान हुआ हो।

इसलिए में पुलिस अधिनियम के खण्ड १५ क (२) (ग) द्वारा अपेक्षित मूल्यांकनसे सहमत होनेमें असमर्थ हूँ।

मजिस्ट्रेटने प्रासंगिक तौरपर कहा है:

उस दिन लायलपुरमें कोई भी दंगा या उपद्रव नहीं हुआ; हालाँकि दुकानें बन्द रखी गईं लेकिन खुद शहरमें कहीं भी कोई अव्यवस्था या लोगोंका गैर-कानूनी जमाव देखने में नहीं आया। (बयान ५१७ ए)

लायलपुर हिंसात्मक कार्रवाइयोंसे इतना ज्यादा मुक्त रहा कि पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट श्री बॉसवर्थ स्मिथने हंटर कमेटीके सामने साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि वहां मार्शल लॉ " अत्यावश्यक " नहीं था, हालांकि वे उसे "वांछनीय" मानते थे। लेकिन फिर भी जितना सैनिक प्रदर्शन किया जा सकता था, किया गया; जितना आतंक फैलाया जा सकता था, फैलाया गया। लोगोंपर मुकदमे चलाये गये, सलाम करनेके हुक्म जारी किये गये, उनकी यात्रापर रोक लगाई गई और उनपर उनके अपने नेताओंका जो प्रभाव था, उसे कम करने और उनकी साख इनेकी सर्वथा अनावश्यक कोशिशोंका सहारा लिया गया था।

गिरफ्तारियाँ २२ तारीखको शुरू हुईं। लाला चिन्तराम थापर कहते हैं:

२२ तारीखको लोगोंने अभी बिस्तरे भी नहीं छोड़े थे कि ब्रिटिश सैनिकों-ने शहरको घेर लिया और चारों तरफ मशीनगर्ने लगा दीं। करीब १२ लोग गिरफ्तार किये गये। मैं भी उनमें से एक था। २ मईको हम लोगोंको,दो-दोको एक-एक हथकड़ी पहनाकर, अदालतके सामने पेश किया गया। हमने विरोध प्रकट किया। इस प्रकार हमें जेलसे अदालत और अदालतसे जेल ले जाया गया और हम जबतक अदालतमें रहे, हथकड़ियाँ पहने रहे और हमें बैठनेतक की अनुमति नहीं दी गई। मुझे मुखबिर बनानेकी कोशिश की गईं,और मेरे एक मित्रके जरिये मेरे पास डिप्टी कमिश्नरके हस्ताक्षरके साथ एक पत्र भी भिजवाया गया।