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५. पत्र: नरहरि परीखको

[१ फरवरी, १९२० के आसपास][१]

भाईश्री नरहरि,[२]

एस्थरने जाकर भारी भूल की है। उसे और मगनलालको मैंने बहुत बार लिखा है। अगर एस्थर स्वयं पढ़नेके लिए दे तो मैंने उसे जो पत्र लिखे हैं वे सब पढ़ने योग्य हैं। यहाँ बैठा-बैठा मैं तुम सबका अध्ययन कर रहा हूँ और ऐसा करते हुए स्वयं भी सीख रहा हूँ।

काकाके[३] सम्बन्धमें तुम ठीक ही लिखते हो। अगर काकाका स्वास्थ्य और भी सुधरेगा तो वे इससे भी अधिक उन्नति कर सकेंगे। मैं काकासे जबसे मिला हूँ तभीसे उनपर से मेरी दृष्टि हटी नहीं है। लेकिन काकाको अनुकूल वातावरणकी जरूरत है। प्रतिकूल वातावरणमें सम्भव है, वे कुम्हला जायेंगे। वे अभी कुछ अर्से से बहुत उपयोगी कार्य कर रहे हैं। 'फोर्सफुल 'के लिए 'जबरदस्त' शब्द काम दे सकता है लेकिन इसमें ठीक-ठीक भाव नहीं आता। मैं कोई दूसरा शब्द सोचूँगा। इस समय तो कुछ लोग मिलनेके लिए आ गये हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ११८८६) से।

६. पंजाबकी चिट्ठी--१०[४]

लाहौर

माघ सुदी १३ [२ फरवरी, १९२०]

दो शिष्टमण्डल

फीजी और ब्रिटिश गियानासे [दो] शिष्टमण्डल अभी कुछ समयसे भारत आये हुए हैं।[५] फीजीके टापू आस्ट्रेलियाके पास हैं। वहाँ पिछले पचास वर्षोंसे भारतीय

  1. १ फरवरी, १९२० को एस्थर और मगनलाल गांधीको लिखे गये पोंके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र इसी तारीखको लिखा गया था।
  2. नरहरि द्वारकादास परीख।
  3. दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर, काकासाहब" के नामसे विख्यात।
  4. गांधीजीने १९१९ के नवम्बर और दिसम्बर तथा फिर फरवरी १९२० में पंजाबकी यात्रा की थी। वहाँसे वे नवजीवनके लिए हर हफ्ते एक पत्र भेजा करते थे; इस पत्र-मालाकी पहली चिट्ठी नवजीवनके २ नवम्बर, १९१९ के अंकमें प्रकाशित हुई थी। देखिए खण्ड १६, पृष्ठ २६९।
  5. दोनों ही गैर-सरकारी शिष्टमण्डल थे।