पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/३३७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०५
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

शेखूपुरा में कोई नुकसान नहीं पहुँचाया गया था। भीड़ने कहीं भी तार वगैरह नहीं काटे थे;फिर भी क्षतिपूर्तिके लिए जनतापर जुर्माना थोप दिया गया। गोसाई मायाराम वकील कहते हैं:

कुल नुकसान ५ रुपये से ज्यादाका नहीं हो सकता। फिर भी पहले तो हर्जानेके रूपमें ९,००० देनेको कहा गया लेकिन बादमें उसे घटाकर १०० रुपये कर दिया गया। इसमें से ६० रुपये उन चार वकीलोंसे वसूल किये गये,जिनको बिल्कुल निर्दोष होते हुए भी ४० दिनतक जेलकी हवा खानी पड़ी थी। (बयान ४८३)

लाला ठाकुरदासने एक बात बतलाई है और श्री बॉसबर्थ स्मिथने उसे अपने बयानमें स्वीकार भी किया है; वह यह कि श्री बॉसवर्थ स्मिथ एक 'तौबा घर' बनवाना चाहते थे। लाला ठाकुरदासको उस मदमें १,००० रुपये देने थे। (बयान ५०७)

अप्रैल महीनेके दौरान शेखूपुराकी घटनाओंका यह लेखा-जोखा पूरा करनेसे पहले कर्नल ओ'ब्रायन, श्री बॉसवर्थ स्मिथ और राय साहब श्रीराम सूदकी गवाहियोंके एक अंशपर नजर डाल लेना जरूरी है। उनकी गवाहियोंसे स्पष्ट है कि वे अपने काममें विद्वेषकी भावनासे प्रेरित थे। यह तो याद होगा कि कर्नल ओ ब्रायनने भारत-रक्षा कानूनके तहत कमिश्नरोंको दी गई सत्ताके आधारपर बिना किसी वारंटके लोगोंको आम तौर- पर गिरफ्तार करनेकी कार्रवाईको उचित ठहराया था। हम भारत-रक्षा कानूनके इस खण्डका उल्लेख पहले ही कर चुके हैं। सामान्य बुद्धिसे तो उसका यही अर्थ लगाया जा सकता है कि उसमें कमिश्नरोंका ही स्पष्ट उल्लेख किया गया है, इसलिए डिप्टी- कमिश्नरोंको उसमें शामिल नहीं किया जा सकता। लेकिन जहाँतक शेखूपुराके वकीलों- की बात है, कर्नल ओ'ब्रायनने यह कहकर बात ही बदल दी कि उनको हड़तालका संगठन करनेके अभियोगमें गिरफ्तार किया गया है। श्री बॉसवर्थ स्मिथ इससे पहले कभी भी शेखूपुरा नहीं गये थे और इसलिए उन्होंने वकीलोंको पहले कभी नहीं देखा था। लेकिन उन्होंने वकीलोंके पूरे तबकेकी अकारण निन्दा ही नहीं की बल्कि उनके खिलाफ उच्च न्यायालयको शिकायत लिखकर भेजनेकी धृष्टता भी की। राय साहब श्रीराम सूदने स्वीकार किया है कि वकीलोंके खिलाफ उनकी शिकायतका आधार यह था कि (क) 'एक वकील 'ट्रिब्यून' का ग्राहक था", (ख) “हड़तालके दिन उसे एक दूसरे वकील के साथ नंगे सिर घूमते पाया गया"और (ग) “सभाके अध्यक्षके नाते उसके पास कुछ वकीलोंके पत्र आये थे जिनमें खेद प्रकट किया गया था" जबकि एक दूसरे वकीलके खिलाफ उनकी शिकायतका आधार यह था कि वह (क) "मुस्लिम हैरॉल्ड" का ग्राहक था", (ख) “उसे एक दूसरे वकीलके घर देखा गया "और (ग) “उसने सभाके अध्यक्षको सभामें शामिल न हो सकनेकी असमर्थता प्रकट करते हुए एक पत्र लिखा था।"

हमने न तो सरसरी तौरपर निपटाये मुकदमों और न ही जोर-जबरदस्तीके तरीकोंके बारेमें अधिक विस्तारसे चर्चा की है। इन दोनोंके बारेमें शेखूपुराके लोगोंके बयानों में पूरा-पूरा सबूत मौजूद है। सरसरी तौरपर निबटाये गये ये मुकदमे एक

१७-२०