पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/३३५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०३
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

पूछा कि मेरे पिता क्या करते थे और मैंने कहाँ शिक्षा पाई है। यह बतलाये जानेपर कि में स्कूलके एक अध्यापकका पुत्र हूँ और मेरी शिक्षा-दीक्षा लाहौर फॉर्मन क्रिश्चियन कालेजमें हुई है,उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया कि तब में उस आन्दोलनमें कैसे शामिल हो सका। श्री बॉसवर्थ स्मियने मुझे अन्य वकीलोंके सामने ही कीड़ा-मकोड़ा कह डाला।

श्री बाँसवर्थ स्मिथने वकीलोंकी गत बना चुकनेपर एक अवकाशप्राप्त पुलिस इन्स्पेक्टर सरदार गौहरसिंहको लिया। उन्होंने सरदार गौहरसिंहको हथकड़ियाँ पहने पहने, नंगे पैर कड़ी धूपमें सभी लोगोंके सामने चलाया।साहबने लोगोंको बतलाया कि गौहसिंह सरकारकी नमकहराम रिआया है,उसके तीन बेटों को उनकी हरकतोंके लिए जेल भेजा जा चुका है और सरकार उसकी भी पेन्शन बन्द करके उसे देश-निकाला देकर बर्मा भेज देगी।

इसके बाद उन्होंने लोगोंको आम तौरपर सम्बोधित करके सलाह देनी शुरू की। उन्होंने सभीको 'सुअर लोग' और 'गन्दी मक्खियाँ' कहा। उन्होंने 'काला लोग','गन्दा लोग', और दुकानें बन्द करके सरकारके खिलाफ बगावत करनेवाले सब एक रंगका' लोग--कहते हुए सचमुच जमीनपर थूक दिया। उन्होंने लोगों से कहा कि वकील लोग हमेशा धोखा देते हैं इसलिए उनकी बातपर कान नहीं देना चाहिए, अगर सलाह लेनी हो तो लम्बरदारों, जैलदारों, तहसीलदारों और डिप्टियोंके पास जाना चाहिए। (बयान ५०३)।

यहाँ हम देखते हैं कि वकीलोंका विशेष तौरपर अपमान किया गया और जनता जिनको अपना मित्र समझती है उनके प्रभावसे उसे अलग हटाने की कोशिश की गई और पुत्रोंके कुछ कल्पित गलत कामोंके कारण एक सम्माननीय पुलिस इन्स्पेक्टरकी जान-बूझकर बेइज्जती की गई और सभी श्रोताओंको भद्दी-भद्दी गालियाँ सुनाई गईं। यह सब उस अफसरने किया जिसे एक पूरा जिला सौंपा गया था और जिसे व्यवस्था कायम करने तथा गलत किस्मके काम करनेवालोंको दण्डित करनेके लिए भेजा गया था।

गौहरसिंहका मामला बतलाता है कि निर्दोष जनताको सख्तीके साथ सजा देने में अधिकारी लोग किस सीमातक गये थे। सरदार गौहरसिंह और उनके परिवारको लगभग बिल्कुल बरबाद कर दिया गया है, उनको बरबाद करने में खास दिलचस्पी लेनेवाले अधिकारीने उचित-अनुचित साधनोंकी भी कोई सीमा नहीं मानी। यदि उनके पुत्र सरदार अमरसिंहके बयानपर भरोसा किया जाये तो यह परिवार कुछ दिनोंसे राय साहब श्रीरामकी नजरमें गड़ रहा था। गवाहका कहना है:

इसीलिए १९ अप्रैल, १९१९ को मेरे पिताको बिल्कुल बेकसूर होनेपर भी गिरफ्तार करके लाहौर सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया, हालांकि उनको उसी दिन

१. जिनका जिक्र शेखूपुरा प्रकरणमें पहले ही हो चुका है।

२. अमरसिंह, आत्मासिह और सोलह वर्षीय सन्तोकसिंह।