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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्ध में कांग्रेसकी रिपोर्ट

हम लोग ठीकसे कपड़े भी नहीं पहने हुए। कुछ तो रातकी भूषा कमीज-पायजामे में ही थे। और मौलवी अलीमदीन वकील सिर्फ एक कमीज और धोती पहने हुए थे। हमने कपड़े मँगवा देनेका अनुरोध किया तो उसे बड़ी रुखाई और झुंझलाहटके साथ ठुकरा दिया गया।

लोगोंको जान-बूझकर अपमानित करने के तरीकेको और अधिक विस्तारसे बतलाते हुए वे आगे कहते हैं:

मुझे, सरदार बूटासिंह, मौलवी अलीमदीन और जमीयतसिंहको एक डिब्बेमें रखा गया, और बॅचें होते हुए भी हमको फर्शपर ही बैठनेका आदेश दिया गया। सरदार बूटासिंहने उसी दिन सुबह दस्तकी दवा ली थी। वे पेशान करनेके लिए जाना चाहते थे और उन्होंने एक पहरेदारसे इसकी अनुमति माँगी।परन्तु उसका कोई फायदा नहीं हुआ। हम सभीने बार-बार अनुरोध किया।इसपर एक सैनिकने उत्तर दिया था,'क्या तुम उसे पी नहीं सकते?"

वे कुछ अन्य घटनाओंका वर्णन करनेके बाद कहते हैं:


जेलमें हमें जो मुसीबतें झेलनी पड़ीं, उनका बयान नहीं किया जा सकता।साधारणतया जेलमें जो भोजन दिया जाता है वह मवेशियोंके लायक ही है,आदमियोंके नहीं। हमें स्नानादिके लिए सुबहके समय आधा घंटा और शामके समय भी आधा घंटा दिया जाता था, तभी हम अपने कमरे से बाहर निकल सकते थे। कभी-कभी वार्डर लोग हमें यह एक घंटेका समय भी नहीं देते थे। वे अपनी मर्जीसे दरवाजा खोलते और जब चाहते तब बन्द कर देते थे।(बयान ४८३)

इस गवाहने सब-डिवीजनल अफसरके साथ हुई एक बड़ी दिलचस्प बातचीत सुनाई। उस अफसरने पहले उनको और फिर सभी वकीलोंको ६ अप्रैलकी सभा में शामिल होनेसे खबरदार करनेकी कोशिश की, लेकिन जब गवाहने उसे समझा दिया कि सभा आपत्तिजनक किस्मकी नहीं है और उसमें शामिल होना वकालतके लाइसेन्सोंके खिलाफ भी नहीं पड़ता तो उसने वैयक्तिक रूपसे अनुरोध किया, जिसे गोसाईंको मान ही लेना पड़ा। इसके बाद सब-डिवीजनल अफसरने अन्य वकीलोंको बुला भेजा और उनसे कहा कि गोसाईंने सभामें शरीक न होनेका वचन दिया है। गोसाईने जब यह सुना तो उन्हें कैसा लगा सो उन्हींकी जबानी सुनिए:

मुझे इससे बड़ा दुःख पहुँचा। मैंने सोचा कि सब-डिवीजनल अफसरने दूसरोंपर असर डालनेके लिए मेरे नामका गलत ढंगसे इस्तेमाल किया है;इसलिए मैंने उनको लिख दिया कि में सभामें जाऊँगा,और मेरे नामका इस ढंगसे इस्तेमाल करनेका उनको कोई अधिकार नहीं है। (बयान ४८४)