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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन मानो इतना काफी नहीं लगा,इसलिए उन लोगोंको और अधिक अपमानित किया गया--रिहाईके समयतक भी। उनको हथकड़ियाँ पहनाकर शेखूपुरा ले जाकर पहले पुलिस थाने और फिर नायब तहसीलदारके घरतक पैदल चलाया गया। जाहिर है कि यह सब उनका मजाक उड़ानेके लिए ही किया जा रहा था।

आखिर नायब तहसीलदारके घरपर उन सबको रिहा कर दिया गया। बयान (४८६) ३०० लाला उशनाकराय बी० ए०, एल एल० बी० ९ वर्षसे प्रथम कोटिके वकील हैं । दो गांवोंकी लम्बरदारी उनके यहाँ पुश्तैनी चली आ रही है। उनकी खुदकी जमीन- जायदाद काफी है । वे युद्ध-कोषके लिए बराबर चन्दा देते रहे हैं । वे कहते हैं: " मैंने पहली अप्रैलतक कभी भी किसी राजनीतिक सभामें भाग नहीं लिया था।"१५ तारीखकी सुबह सब-डिवीजनल अफसरने उनको बुला भेजा। उन्होंने विधि और व्यवस्था बनाये रखने में अफसरोंकी मदद करनेका वादा किया। सब-डिवीजनल अफसर उसी दिन शामको चूहड़खाना चला गया था। लेकिन लॉर्ड हंटरकी कमेटी के सामने दी गई उनकी गवाहीसे यह ताल-मेल नहीं खाता। गवाही में उन्होंने कहा कि शेखपुरा ऊपरसे देखने में ही शान्त लगता था, वह शान्ति वास्तविक नहीं थी। यहाँ याद रखनेकी बात यह है कि तार काटनेकी जिन घटनाओंका हम उल्लेख कर आये हैं, उनके बावजूद वे शेखूपुरासे चले गये। गवाहका कहना है कि उन्होंने १८ अप्रैलकी शामतक स्थानीय अतिरिक्त सहायक आयुक्त (एक्स्ट्रा असिस्टेन्ट कमिश्नर) के साथ सहयोग किया । १९ तारीखको उन्होंने सब-डिवीजनल अफसरके यहाँ हाजिरी भी दी और उनको बताया कि शेखूपुरा में सब-कुछ ठीक चल रहा है। लेकिन उसके चन्द मिनट बाद ही उनके ही मकान में उनको गिरफ्तार कर लिया गया और उनको न तो जाकेट पहननेकी इजाजत दी गई और न घरके दरवाजे बन्द करनेकी ही। वे कहते हैं:

वे लोग गोसाईं मायारामके लिए रुके हुए थे, उनका दफ्तर मेरे दफ्तरसे थोड़ी ही दूर था। उस असमें मुझसे वहीं जमीनपर गन्दगीमें बैठने के लिए कहा गया। मैं थका हुआ नहीं था इसलिए बैठना नहीं चाहता था। लेकिन अप-मानित करनेके लिए मुझे बैठनेपर मजबूर किया गया।

लाहौरकी रेलवे हवालातका वर्णन करते हुए वे कहते हैं:

पहले उसे पाखानेकी तरह इस्तेमाल किया जाता था, इसलिए उसमें तेज बदबू समाई हुई थी। वह जगह आदमियोंके रहने लायक बिल्कुल नहीं थी।

उनको हवालातके बाहर ही अपनी पगड़ियाँ और जूते उतार देनेके लिए विवश किया गया। गौहरसिंहने सिख होनेके नाते अपनी पगड़ी उतारनेपर आपत्ति की और अपना चश्मा भी लगाये रखना चाहा, क्योंकि वृद्धावस्थाके कारण वे उसके बिना देख नहीं पाते थे। उनकी आपत्तियाँ अनसुनी कर दी गईं। उन्हें बिना कुछ बतलाये लम्बरदारीसे बर्खास्त कर दिया गया और ऊपरकी अदालतमें की गई उनकी अपील भी बिना किसी सुनवाईके खारिज कर दी गई।(बयान ४८५)।

गोसाईं मायाराम भी बी० ए०, एल एल० बी० हैं। उनका कहना है कि गिरफ्ता- रियाँ बड़े तड़के हुई।