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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्ध में कांग्रेसकी रिपोर्ट

७ दिनतक रोजाना बड़े सुबहसे लेकर शामतक हाजिरी देनी पड़ी। अन्य स्थानोंकी भाँति यहाँ भी स्कूली बच्चोंतक को हाजिरी देने जाना पड़ता था।

३८ सालतक लम्बरदारी कर चुकने और पुलिस-इंस्पेक्टरके रूपमें अवकाश ग्रहण करनेवाले एक साठ वर्षीय सम्माननीय व्यक्तिको भी केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया कि जब पुलिसको उनके लड़कोंकी तलाश थी, उस समय वे शेखूपुरामें नहीं थे। उनकी जायदाद जब्त कर ली गई और उनके बटाईदारोंको फसल काटनेसे मना कर दिया गया।

सैनिकों और पुलिसके सिपाहियोंने मनमाने ढंगसे लोगोंके सामानपर हाथ साफ किया। गवाह बनाने के लिए अन्य स्थानोंकी तरह यहाँ भी जोर-जबरदस्ती की गई और मुकदमोंमें भी न्यायकी वही विडम्बना की गई जो अन्य स्थानोंपर देखनेको मिलती है। पर श्री बॉसवर्थ स्मिथने यहाँ एक नया कदम यह उठाया कि वकीलोंको वकालत करनेके अधिकारसे वंचित करानेके लिए उच्च न्यायालयके पास उनकी शिकायत की। हमने करीब ७० बयानों में से ३० बयान यहाँ देना तय किया है और जो सभी हमारी ऊपर कही हुई बातोंकी पुष्टि करते हैं।

सरदार बूटासिंह बी० ए०, एल एल० बी०, जिला वकील संघ (बार-लीग) के सदस्य थे। उन्होंने रंगरूटोंकी भरतीमें मदद की थी और इनसे वाओंके लिए उनको सरकारने एक प्रमाणपत्र भी दिया था। उनका कहना है कि वे किसी काममें लगे हुए थे, इसलिए उन्होंने दोनोंमें से किसी भी दिन की हड़तालमें भाग नहीं लिया। १४ अप्रैलके बारेमें वे लिखते हैं:

किसी भी जगह कोई भीड़ जमा नहीं हुई, और न जनताने कहीं कोई प्रदर्शन या कोई ऐसा काम किया जिसे असामान्य कहा जाये।

अन्य स्थानीय नेताओंके साथ उनको भी १९ तारीखको अचानक गिरफ्तार कर लिया गया।

हम सभीको संगीन लगी भरी बन्दूकोंसे लैस २५ सैनिकोंकी देखरेख में रखा गया। हमको इसी दशामें शहर-भरमें घुमाया गया और एकाधिक बार हमारे ही गाँववालोंके सामने हमको गन्दी जगहोंपर बैठने के लिए मजबूर किया गया। करीब एक घंटेतक हमारी अपमानजनक स्थितिका पूरा तमाशा दिखानेके बाद, हमको बख्तरबन्द गाड़ीकी तरफ दौड़ाते हुए ले जाया गया। ...में बीमारीके कारण जब दूसरे लोगोंके साथ कदम मिलाकर नहीं चल पाया, तो मुझे गालियाँ दी गईं, मेरा मखौल उड़ाया गया और मुझे लाठीसे पीटा भी गया।

कैदियोंको लाहौर ले जाया गया। इसमें दो घंटे लगे। बार-बार कहनेपर भी पहरेदारोंने उनको टट्टी-पेशाबकी इजाजत नहीं दी और शाम ढले उनको भोजन भी नहीं दिया गया।

हमें रेलवे स्टेशनसे लाहौर सेन्ट्रल जेल ले जाया गया। वहाँ हथकड़ियाँ पहनाकर सभीको तनहाईमें डाल दिया गया। इस तरह हमको ४० दिनतक नजरबन्द रखा गया और हमें अधिकसे-अधिक परेशानी और तंगी झेलनी पड़ी।