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पंजाब के उपद्रवोंके सम्बन्ध में कांग्रेसकी रिपोर्ट

आदमियोंने उन्हें वहाँ देखा था, जिनमें कालेजके वाइस प्रिंसिपल और कुछ अध्यापक भी शामिल हैं।

वे (मंगलसिंह) जगतसिंहको छुट्टी दिलानेके सिलसिलेमें मेरे पास भी आये थे। मैंने इस तथ्यके बारेमें डिप्टी कमिश्नरको लिखा और मौखिक रूपसे भी बतलाया। अदालतमें इसकी जानकारी मिलनेपर उन्होंने तुरन्त मंगलसिंहकी रिहाईका हुक्म दे दिया। मेरा कहना है कि यदि अदालतने यह समझ लिया होता कि मंगलसिंह, भगवानसिंह और माघसिंहके ही भाई हैं और मंगलसिंहकी अनुपस्थिति सिद्ध हो चुकी है, तो वह इस मुकदमेमें शिनाख्ती के सम्बन्धमें पेश किये गये सबूतको सही नहीं मानती, क्योंकि भगवानसिंह और माघसिंहकी शिनाख्त करनेवाले कुलियोंने ही मंगलसिंहकी भी शिनाख्त की थी।

(ह०) जी० ए० वायन

प्रिन्सिपल,

खालसा कालेज, अमृतसर

(बयान ६१३)

श्री वायनका पत्र पेश किये जानेपर इन लोगोंको बड़ी शीघ्रतासे रिहा कर दिया गया, लेकिन हर आदमी तो जगतसिंहकी तरह ऐसा सौभाग्यशाली नहीं होता कि वह श्री वाथन-जैसे ऊँची पद-प्रतिष्ठावाले किसी मध्यस्थसे परिचित हो।

बिशनसिंहने मुकदमेका काफी ब्यौरेवार विवरण दिया है। वे बतलाते हैं कि किस प्रकार एक रेलवे बाबूके यह कहनेपर कि वह शिनाख्त नहीं कर सकता, लम्बर- दार और जैलदारने उसे उकसाया और किस प्रकार ऐसे आदमीकी शिनाख्त कराकर सजा दिलवा दी गई जो उस समय नवाँ पिण्डमें मौजूद नहीं था।( बयान ६१२)

श्री बॉसवर्थ स्मिथने कैदियोंके एक जत्थेके मुकदमेके दौरान सुरेनसिंहसे मंगल- सिंहकी मौजूदगीके बारेमें सवाल किया। सुरेनसिंह कहते हैं:

मैंने कहा कि वे वहाँ मौजूद नहीं थे। लेकिन कुछ दूसरे लोगोंने--- ज्वालासिंह जैलदार और जीवनसंह-जैसे लोगोंने--बयान दिया कि वे उपद्रवमें शामिल थे। इसपर श्री बॉसवर्थ स्मिथने मुझे उसी वक्त तीन महीनेकी सजा सुना दी।बादमें खालसा कालेजके प्रिंसिपलके पत्रसे जब यह पता चला कि धबनसिंहकी उस घटनाके दिन मंगलसिंह अमृतसर में था तो मुझे छोड़ दिया गया।(बयान ६१४)

हमारा अनुमान है कि सुरेनसिंहको झूठी गवाही देनेके लिए सजा दी गई थी। वे लम्बरदार थे। वे अगर सजासे बच पाये तो इसी कारण कि श्री वाथनके पत्रसे यह सिद्ध हो गया कि उन्होंने झूठी गवाही नहीं दी। लेकिन उनके निर्दोष सिद्ध हो जानेके बाद भी लम्बरदारीसे उनकी बर्खास्तगी अभी कायम है।

सोहनसिंहको भी इसी कारण सजा दी गई थी और बादमें इसका पता चलनेपर उन्हें भी छोड़ दिया गया। वे भी लम्बरदार थे और सुरेनसिंहकी तरह उन्हें भी लम्बरदारीसे बर्खास्त कर दिया गया। (बयान ६१५)

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