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३.पत्र: एस्थर फैरिंगको

लाहौर

रविवार [१ फरवरी, १९२०]

[१]

रानी बिटिया,


संलग्न पत्र[२]मैने सुबह लिखा था। मुझे तुम्हारा पेंसिलसे लिखा पत्र अभी-अभी मिला है। मैं साफ देख रहा हूँ कि निमन्त्रण स्वीकार करके तुमने गलती की। तुम छोटी और अनुभवहीन हो। तुम्हारा हृदय कुन्दन जैसा है, परन्तु उसे सुस्थिर बनानेकी जरूरत है। बिना पतवारके एक बड़ा जहाज क्या है? वह कहाँ जाता है? क्या वह मार्ग-विचलित नहीं हो जाता? आज मेरा हृदय तुम्हारे लिए रो रहा है। तुमने एक ऐसा वातावरण[३]छोड़ दिया है, जहाँ एक खास ढंगसे तुम अपना विकास कर सकती थीं; अब तुम एक ऐसे वातावरणमें[४]आ गई हो जहाँ यदि तुम उस वातावरणको आत्मसात् कर सको तो कहीं अधिक विकास कर सकती हो। ध्यान रखना कि अपने स्वभावकी स्वच्छन्दताके कारण तुम अपना नुकसान न कर लो। एक अनुशासित अन्तरात्माकी आज्ञाका ही पालन करना चाहिए। वह ईश्वरकी आवाज है। एक अनुशासन-विहीन अन्तरात्मा विनाशकी तरफ ले जाती है, क्योंकि उसकी आवाज शैतानकी आवाज होती है। काश मैं तुम्हारे पास होता।

प्रभु, प्रभु, कहकर मुझे पुकारनेवाला प्रत्येक व्यक्ति स्वर्गके साम्राज्यमें नहीं जा सकता, परन्तु जो व्यक्ति स्वर्गमें विराजमान मेरे पिताको इच्छानुसार कार्य करता है, वही उस साम्राज्यमें प्रवेश करेगा।

मैं यह उद्धरण स्मृतिके आधारपर ही दे रहा हूँ परन्तु इससे काम चल जायेगा।

अपने-आपको अनुशासनमें जरूर रखो। मगनलालसे[५]लिये बगैर कभी कुछ न करो। उसे बड़े भाईजैसा समझो। उसके साथ घनिष्ठता स्थापित करो। जिस

  1. पत्र के मजमूनसे प्रतीत होता है कि यह एस्थर फैरिंगका ३० जनवरी, १९२० का पत्र (देखिए खण्ड १६) मिलनेके तुरंत बाद लिखा गया था। सन् १९२० में उस तारीखके बाद पहला रविवार १ फरवरी को पड़ा था।
  2. देखिए पिछला शीर्षक
  3. डेनिश मिशन, जिससे एस्थर फैरिंग सम्बद्ध थीं।
  4. साबरमतीका सत्याग्रह आश्रम।
  5. मगनलाल गांधी (१८८३-१९२८); गांधीजीके चचेरे भाई खुशालचन्द गांधीके द्वितीय पुत्र; एक समय फीनिक्स आश्रम और बादमें साबरमती आश्रमके व्यवस्थापक (१९१५-२८)। यहाँपर मूलमें "महादेव" दिया है, जो स्पष्ट ही एक भूल है; देखिए अगला शीर्षक। इसके अतिरिक्त नेशनल आर्काइब्ज़ ऑफ इंडियामें रखी पत्रकी फोटो-नकलमें मगनलाल है।