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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

कुलीको ठीक इसी ढंगसे उसी आदमीकी शिनाख्त करने के लिए बुलाया जाता था। इस तरह करीब २८-२९ आदमियोंको गिरफ्तार किया गया। भगवानसिंह नामक एक व्यक्तिने गिड़गिड़ाकर कहा कि उस दिन तो वह अपने घरसे निकला तक नहीं था। साहबने उसे एक पेड़से बँधवाकर १२ कोड़े लगानेका हुक्म दे दिया; इसलिए कि उसने कुछ कहने की जुर्रत की थी। इसके बाद शिनाख्तीके लिए बुलाये गये सभी लोगोंको रेलवे स्टेशन ले जाया गया, जहाँ पटवारीने नाम ले-लेकर सबकी हाजिरी ली। ईश्वरसिंह मौजूद नहीं था। साहबने पूछा कि उसका कोई रिश्तेदार मौजूद है या नहीं। पटवारीने उत्तर दिया कि उसका बहनोई [साला?] मौजूद है। उसका मतलब मुझ (खुशालसिंह) से था। साहबने तुरन्त मेरी गिरफ्तारीका हुक्म दे दिया। हम सबको सराय (रेस्ट हाउस) ले जाकर एक कमरेमें बन्द कर दिया गया और बाहर एक पहरेदार बैठा दिया गया। हम वहाँ बिना अन्न-पानीके दो दिनतक रहे। जो भी रिश्तेदार हमारे लिए खाना लेकर आते थे, उनको लौटा दिया जाता था।... ९ तारीखको हमको फिर कैनाल बँगले ले जाया गया। उस दिन ईश्वरसिंह भी आ गये । सब-इन्स्पेक्टरने उनसे कहा कि अगर वे सरकारी गवाह बन जायें तो उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जायेगा। नवाँ पिण्डके मायासिंह कम्बोका लड़का तेजासिंह भी उस समय वहीं था। उसे सरकारी गवाह बना लिया गया। साधुसिंह सुनार, ज्वालासिंह जैलदार और ज्वालासिंहके लड़के बंटासिंहको भी गिरफ्तार कर लिया गया था। सरकारी गवाह बननेका वायदा करनेपर पुलिस सब-इन्स्पेक्टरने उन सबको छोड़ दिया।सरकारी गवाह बनते ही मुझे भी रिहा कर दिया गया। हमारे गाँवके हर औरत-मर्वको तहसीलदारके सामने हाजिरी देनी पड़ी। हर गिरफ्तारशुदा आदमीको बुलाकर सजा सुना दी गई। सबूत नहीं लिये गये। यदि किसीने थोड़ा भी कुछ कहनेकी कोशिश की तो उसे पिटवाया गया।(बयान ६११)

श्री बॉसवर्थ स्मिथ द्वारा किये गये तथाकथित मुकदमोंकी पूरी बानगी हमारे सामने है, और हमने देखा कि किस तरह गवाहियाँ गढ़ी गईं। अमृतसरका खालसा कालेज पंजाबकी सबसे बड़ी शिक्षा-संस्थाओं में से एक है। उसके प्रिंसिपल श्री वायनने नवाँ पिण्डमें न्यायकी इस विडम्बनाके बारेमें अपने विचार लिखित रूपमें व्यक्त किये हैं। उन्होंने जो कुछ कहा, हम उसे नीचे ज्योंका-त्यों दे रहे हैं:

जिला गुजराँवालाकी तहसील खानगाह डोगराँके ग्राम नवाँ पिण्ड, चक संख्या ७८ के निवासी जीवनसिंहके लड़कों--भगवानसिंह और माघरसिंहका मुकदमा।

इन दोनों व्यक्तियोंको भारतीय दण्ड संहिताके खण्ड ६ (क), (ख), (ग) के अन्तर्गत ९ मई, १९१९ को सजा दी गई थी। उनपर अभियोग यह था कि धवन,रेलवे स्टेशनको आग लगानमें वे भी शामिल थे। उनमें से प्रत्येकको दो सालकी