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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

मनियाँवालाकी कई स्त्रियोंने इस बयानकी ताईद की है।

गवर्नमेंट स्कूलके अध्यापक नवाबदीन कहते हैं कि श्री बॉसवर्थ स्मिथने उनपर जोर डाला था कि वे मूलसिंहके खिलाफ कहें कि उन्होंने सरकारके विरुद्ध भाषण दिया था। नवाबदीन कहते हैं:

लेकिन जब मैंने दुबारा कहा कि यह सच नहीं है तो उन्होंने मुझको बेंतसे पीटना शुरू किया। उन्होंने मुझको इतनी देरतक और इतनी बेरहमीसे पीटा कि मेरी कलाई और घुटनोंपर काफी दिनोंतक चोटके निशान बने रहे। उन्होंने कहा कि मैं एक सरकारी कर्मचारी हूँ इसीलिए मुझे सरकारके पक्षमें गवाही देनी चाहिए। वे मुझे काफी देरतक पीटते रहे और उसके बाद एक सिपाहीको मुझे बेंगलेपर पहुँचानेका आदेश दिया। (बयान ५७८)

लहनासिंहके साथ भी इसी तरहका सलूक किया गया।

हम जैसे ही बॅगलेकी तरफ रवाना हुए, साहबने औरतोंकी तरफ रुख किया। रास्ते में हमें उन औरतोंकी चीखें सुनाई पड़ती रहीं।(बयान ५७९)

हमने इन घटनाओंको कुछ विस्तारके साथ इसलिए पेश किया है कि हमारा खयाल है कि कोई भी अफसर, जो श्री बॉसवर्थ स्मिथकी तरहका सलूक कर सकता है, किसी भी सभ्य सरकारमें कोई जिम्मेदारीका पद सँभालने या सम्राट्की सर- कारकी वर्दी पहननेके सर्वथा अनुपयुक्त है।

मनियाँवालाकी घटनाओंके सिलसिलेमें आये दूसरे बयानोंसे पता चलता है कि कैसे ८० गाँववालोंको गिरफ्तार किया गया और ज्यादासे-ज्यादा परेशान किया गया, किस तरह इन गाँववालोंको अपने भोजनके लिए दाम चुकाने पड़े, जबकि नजरबन्दीके दौरान उनको भोजन देना सरकारका कर्त्तव्य था, कैसे झूठी गवाही दिलवानेके लिए उनको धमकियाँ दी गई और कोड़े लगाये गये, किस ढंग से श्री बॉसवर्थ स्मिथने उनके मुकदमे निबटाये, और किस तरह उक्त बयानों में वर्णित गवाहियोंके आधारपर मार्शल लॉ कमिशनोंके सामने गाँववालोंपर मुकदमे चलाये गये और उनमें से कुछको काले पानीकी सजा दे दी गई। सौभाग्य की बात है कि सजाएँ बादमें घटा दी गईं और शाही घोषणाके अधीन इन लोगोंको रिहा कर दिया गया है। लेकिन इस तरह बरी कर देनेसे गाँववालोंके प्रति किये गये अन्यायका प्रायश्चित्त नहीं हो जाता, उनमें से यदि सभी नहीं तो अधिकांश सर्वथा निर्दोष मालूम पड़ते हैं। गाँववालोंपर दाण्डिक पुलिस बैठा दी गई और श्री बॉसवर्थ स्मिथने उनपर हर्जानेकी एक भारी रकम भी थोप दी थी, जिसे बादमें घटा दिया गया।

मनियाँवालामें हुई क्रूरताओंका यह संक्षिप्त विवरण इस तथ्यका उल्लेख किये बिना समाप्त नहीं किया जा सकता कि श्री सी० एफ० एन्ड्रयूज व्यक्तिगत रूपसे कांग्रेस उप-समितिकी ओरसे इस स्थानपर गये थे और वे अपने साथ जो साक्ष्य लाये, उनसे अमानवीय कृत्योंके सम्बन्ध में दिये गये उपर्युक्त बयानोंकी परिपुष्टि होती है।

१. नवम्बर, १९१९ में आफ्रिका जानेसे पहले।