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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

गई थी और स्टेशनको जलाया और लूटा था। ऐसी कोई उत्तेजनाकी बात नहीं थी, जिसके आधारपर इस निरी अनुत्तरदायित्वपूर्ण विनाश-लीलाका औचित्य ठहराया जा सके। निश्चित तौरपर नहीं कहा जा सकता कि स्टेशन जलानेवाले लोग आसपासके गाँवोंके थे या बाहर कहींसे आये थे। जो भी हो लेकिन अधिकारियोंने इसका बदला लेनेके लिए जो अन्यायपूर्ण कदम उठाये वे सर्वथा अनावश्यक थे। हमने अपनी इस रिपोर्टमें मोमन गाँवसे सम्बन्धित बयान इसलिए शामिल नहीं किये क्योंकि यह गाँव सांगलाका ही एक हिस्सा है और आसपासके गाँवोंके लोगोंको भी उसी दुर्व्यवहारका शिकार होना पड़ा था जिसके शिकार साँगलाके लोग हुए थे।

मनियाँवाला और आसपासके स्थान

इस गाँवकी आबादी मुश्किलसे ५०० है । यह धबनसिंह रेलवे स्टेशनके निकट- वर्ती गाँवों में से एक है। इस स्टेशनको आसपासके गाँवोंके लोगोंने १६ अप्रैल, १९१९ को लूटा और जलाया था। गाँववालोंने अमृतसरमें हुई घटनाओंके काफी नमक-मिर्च लगे हुए समाचार सुने थे और स्पष्ट ही इससे उत्तेजित होकर उन्होंने आगजनीकी हरकत की थी; और जैसा कि एक गवाहने कहा है, यह सारी कार्रवाई शुरू तो एक प्रति- हिंसाकी भावनासे हुई थी, लेकिन कुछ शरारती लोगोंने इसे लूटमारका रूप दे दिया।

गाँववालोंकी हरकत तो बुरी थी ही, लेकिन अधिकारियोंने बदलेकी जो कार्रवाई की वह बिलकुल हृदयहीन थी और उसने शिष्टताकी सभी सीमाओंका अतिक्रमण कर दिया। १९ अप्रैलको एक फौजी ट्रेन धबनसिंह स्टेशन पहुँची। ट्रेनसे कुछ सैनिक उतरे। उनकी बन्दूकोंका मुँह मनियाँवालाकी तरफ था। वे गोलियाँ दागते हुए गाँवकी तरफ बढ़े। कुछ लोग जख्मी हुए और कमसे-कम एकको तो अपनी जानसे ही हाथ धोना पड़ा और एक जीवन-भरके लिए अपंग बन गया। ऐसा नहीं लगता है कि इस गोलीबारीका कोई कारण था । गोलियाँ चलनेकी आवाज सुननेपर स्त्रियाँ घरोंसे निकलकर भागी, गर्भवती स्त्रियाँ भी भागीं। सरदार अतरसिंहकी जान तो मुश्किलसे ही बच पाई। वे तीस सालसे लम्बरदार हैं और इस गाँवकी स्थापना उन्होंने ही की थी। उनके मकानकी तलाशी ली गई। आलमारियोंके किवाड़ तोड़ डाले गये, और नकदी तथा अन्य माल निकाल लिया गया। कहते हैं, अतरसिंह ११५ वर्षके हैं। सोसे ऊपर तो है ही और अब चल-फिर भी नहीं पाते। वे खाटपर बैठे-बैठे अपने दिन गुजार रहे हैं। उन्हें और इन्दरसिंहको गिरफ्तार कर लिया गया। चूँकि वे चल फिर नहीं सकते थे, इसलिए उन्हें घोड़ेपर बैठा दिया गया। दोनोंको स्टेशन ले जाकर लोहेके एक [ माल ] डिब्बे में जिससे फिलहाल हवालातका काम लिया जा रहा था, बन्द कर दिया गया। वहाँ उनको कुछ दिन रखा गया। यह डिब्बा चूंकि लोहेका बना हुआ था और इसके अन्दर कहीं भी कोई और चीज नहीं लगाई गई थी, इसलिए अप्रैलकी गर्मीके दिनों में उसमें रहना असहनीय हो गया था। गाँवके और भी कई लोगोंको इसी तरह बिना भोजन-पानीके अपने दिन बिताने पड़े। (बयान ५७७)।

कुछ दिन बाद श्री बॉसवर्थ स्मिथ सैनिकोंकी एक टुकड़ी लेकर एकाधिक बार आये। मनियाँवालामें हमें जो साक्ष्य दिये गये थे उनमें से कुछ बहुत ही क्षोभजनक