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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्ध में कांग्रेसकी रिपोर्ट

था और उसके साथ कोई भीड़ नहीं थी। वह तो एक व्यक्तिगत मामला था। १५ तारीखको या किसी और दिन भी श्री वेल्सपर कोई भी कातिलाना हमला नहीं हुआ था, और न वे गम्भीर रूपसे जख्मी ही हुए थे। हमारे पास मौजूद साक्ष्यसे बिलकुल ही स्पष्ट है कि साँगलाके नागरिकोंने किसी भी व्यक्तिपर हमला करने या जाय- दादको नुकसान पहुँचाने में कोई भाग नहीं लिया था। फिर भी १९ अप्रैलको मार्शल लॉकी घोषणा कर दी गई। डिप्टी कमिश्नर साँगला गये, पर उन्होंने उस समय फिरसे हड़ताल न करनेकी चेतावनी देनेके अलावा और कुछ नहीं किया। लेकिन २२ तारीखको एक अफसरने ब्रिटिश सैनिकोंके साथ आकर ११ नेताओंको गिरफ्तार कर लिया, और चन्द घंटों बाद उनको छोड़ दिया। पर २६ अप्रैलको फिर गिरफ्तारियां शुरू कर दी गईं। गिरफ्तार किये हुए लोग २९ तारीखको रिहा कर दिये गये। लेकिन १२ मईको एक सैनिक प्रदर्शन हुआ और पहाड़ीकी तरफसे गोलियां चलाई गईं। साफ है कि लोगोंको भयभीत करनेके लिए ही ऐसा किया गया था। गश्ती टुकड़ीके कप्तान यूइंगने लॉर्ड हंटरकी समितिके सामने कहा कि उन्होंने "विशाल जन-समूहके सामने एक मशीनगन और लुइस गन दागकर प्रदर्शन" किया। उसी दिन १३ नेताओंको फिर गिरफ्तार कर लिया गया और उनको हथकड़ियाँ पहनाकर बड़ी अपमानजनक दशामें पैदल चलाया गया। १३ मईको ६४ और गिरफ्तारियाँ की गईं। उनको बड़े ही अपमानजनक तरीकेसे उनकी ही पगड़ियोंसे बाँधकर पुलिस चौकीतक पैदल ले जाया गया। कुछ दिनोंतक रोज ही नागरिकोंकी हाजिरी ली जाती रही। १४ तारीखको ४७ व्यक्ति और गिरफ्तार किये गये। श्री बॉसवर्थ स्मिथने १८ तारीखको गिरफ्तार किये गये लोगोंसे कहा कि यदि वे ५०,००० रुपये जुर्मानेमें दें तो सभीको छोड़ दिया जायेगा। श्री बॉसवर्थ स्मिथ स्वीकार करते हैं कि वे साँगलाकी जनतापर ५०,००० रुपये जुर्माना करना चाहते थे, पर इस बातसे इनकार करते हैं कि जुर्मानेकी शर्तपर वे उनको छोड़ देने के लिए तयार थे। जो भी हो, इतना तो सही है ही कि १९ मईको कुल १२४ में से ११६ व्यक्ति छोड़ दिये गये, जिसके बारेमें आम लोगोंका कहना है कि गिरफ्तार लोगोंसे भिन्न कुछ लोग ५०,००० रुपयेका जुर्माना भरनेके लिए तैयार हो गये थे। जिन आठ व्यक्तियोंको मुक्त नहीं किया गया उनपर १ जूनको मुकदमा चलाया गया और प्रत्येकको छः-छः मास कारावास और सौ-सौ रुपये जुर्मानेकी सजा दे दी गई। फैसला जिस सवतपर आधारित था वह सजाके लिए सर्वथा अपर्याप्त था।

छोटी-छोटी बातोंपर लोगोंको कोड़े लगाये गये, और कहने की जरूरत नहीं कि कोड़े लगानेसे पहले आम तौरपर उनकी डाक्टरी जाँच भी नहीं कराई जाती थी। दूकानदारोंसे खाने-पीनेकी वस्तुएँ बिना दाम दिये ले ली जाती थीं। सम्माननीय व्यक्ति- योंको भी अफसरोंके पंखे खींचने और जब-तब धूपमें खड़े रहनेको मजबूर किया गया। स्कूली लड़कोंको भी, जिनमें छोटे बच्चेतक शामिल थे, रोज-रोज हाजिरी देने और चिलचिलाती धूपमें खड़े होकर यह कहनेपर मजबूर किया कि : “ जनाब हमने कोई गलत काम नहीं किया और न आगे करेंगे।" इसमें इतनी सख्ती बरती जाती थी कि श्री बालमुकुन्द अपने सात सालके भतीजेको भी इससे छुट्टी नहीं दिला पाये। उन्होंने