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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी

मुझपर डाला। पहले उसने मेरी प्रशंसा की कि मैं एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति हूँ और फिर मुझे डराया कि मुझे फाँसी भी दी जा सकती है और मेरी सारी जायदाद जब्त की जा सकती है या हो सकता है, मुझे आजीवन कारावास दे दिया जाये। पहले तो मैंने उससे कहा कि मैं गद्दारी नहीं करना चाहता। तब उसने मुझे दलीलें देकर समझाया कि सच बोलना गद्दारी करना तो नहीं है। इसपर मैंने अपने पिता और स्कूलके धर्म-शिक्षकसे परामर्श किया और तय किया कि मैं सच ही बोलूंगा, सचके अलावा और कुछ नहीं। जब मैंने इन्स्पेक्टरसे यह बात कही तो वह बोला कि वह सचाई ही चाहता है और कुछ नहीं। लेकिन जब मैंने बयान दिया तो उसने सुझाया कि मुझे यह नहीं कहना चाहिए कि मैं ६ अप्रैलको शान्तिपूर्ण सभामें बोलनके लिए तैयार था । उसने यह भी सुझाया कि यदि मुझसे पूछा जाये कि नेताओंने हिंसात्मक कार्रवाईमें भाग लिया या नहीं, तो मुझे कहना चाहिए कि मैं उस मौकेपर मौजूद नहीं था, इसलिए मैं कैसे बतला सकता हूँ। मुझे उस समय पूरा विश्वास था और आज भी में यही समझता हूँ कि अभियुक्तोंमें गुरदयालसिंह और लाला रामसहाय-जैसे जो नेता थे उन्होंने कोई हिंसापूर्ण कार्य नहीं किया था। पर मेरे चारों ओर जो एक वातावरण बना दिया गया था, उसके प्रभाव में आकर मैंने अपने बयानमें यह बात नहीं कही। मेरा बयान खत्म होनेके बाद मुझसे कहा गया कि मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं है, इसलिए मुझे रिहा कर दिया जायेगा और सर- कारी गवाहके रूप में पेश किया जायेगा। मैं सच बात बतलानेके लिए तो तैयार ही था और मैंने सच बात ही बतलाई भी; हाँ मैंने यह बात नहीं कही कि अभियुक्तोंने कोई हिंसापूर्ण कार्य नहीं किया। अदालतमें मुझसे हिंसापूर्ण कार्र- वाईके बारेमें कोई प्रश्न ही नहीं पूछा गया।

हमें २१ मई, १९१९ को फिर हाफिजाबाद लाया गया। कुछ वेश्याएँ और निचले दर्जेके कुछ लोग हमारी शिनाख्त करने आये । इस बार हम लोगोंकी संख्या बहुत ज्यादा थी और चूँकि जेलोंमें पर्याप्त स्थान नहीं था, इसलिए हमको दफ्तरके एक बड़े कमरेमें रखा गया। हमें रात-दिन हथकड़ियाँ पहनाये रखा गया, और एक-दूसरेके सामने बैठकर नंगे टट्टी-पेशाब करना पड़ा। दो- के बीच एक हथकड़ी थी, और उसी हालत में हमें टट्टी-पेशाब करना पड़ा। हमें रातमें हथकड़ियाँ पहने-पहने ही खुलेमें सोना पड़ा।

२३ अप्रैल, १९१९ को मुझे कर्नल ओ'ब्रायनके सामने पेश किया गया। उन्होंने मुझसे १,००० रुपयेकी जमानत माँगी। जमानत देनेपर मुझे रिहा कर दिया गया। डिप्टी कमिश्नरने मुझे ४ दिन बाद फिर बुला भेजा और उनके बॅगलेके बाहर मुझे बतलाया गया कि अब मेरे ऊपर कोई प्रतिबन्ध नहीं रहा है। इसके बाद कर्नल ओ'ब्रायन बाहर निकले और बोले,"तौबा करो।" मैंने