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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस सब-इन्स्पेक्टरने इजाजत नहीं दी। इस तरह हमें पूरे दिन निराहार रहना पड़ा। हमें २९ मईको लाहौर लाया गया। हमारे कागजात सरकारी वकीलको दिखलाये गये। उसने हमारे अपराधको बड़ा नहीं माना और हमारा मामला वापस भेज दिया। ४ जूनकी शामको श्री वेस हमारे पास सफाईके गवाहोंकी सूची तैयार करने आये। हमने उनसे बार-बार पूछा पर हमें यह नहीं बतलाया गया कि हमारे ऊपर क्या-क्या आरोप लगाये गये थे और न हमें यही बतलाया गया कि सरकारी गवाह कौन-कौन हैं। ७ जूनको पेशी रखी गई। इससे हमें अपनी सफाईकी तैयारीके लिए बहुत ही थोड़ा समय मिल पाया। हम न तो अपने रिश्तेदारों को सूचित कर पाये और न वकील हो खड़े कर पाये मेरे सफाईके गवाहों में से एक सहायक-सर्जन, डा० उमरेकसिंह शिमलामें थे। उनको बुलाया ही नहीं गया। डा० दौलतरामने जिरहके दौरान स्वीकार किया कि मेरे साथ उनके सम्बन्ध बिगड़े हुए हैं। दूसरे सरकारी गवाह पुलिसके डरसे गवाही दे रहे थे। मेरे सफाईके सभी गवाह सम्माननीय सज्जन हैं। उन्होंने बयान दिया कि मैं आँखकी तकलीफकी वजहसे बिस्तरेपर पड़ा था, इसलिए मैं अपने घरसे बाहर निकल ही नहीं सकता था। मेरी अवस्था ६० से ऊपर है। मैंने कभी किसी राजनीतिक सभानें भाग नहीं लिया है। श्री वेसने डिप्टी कमिश्नर कर्नल ओब्रायनसे मशविरा करनेके बाद मुझपर पांच सौ रुपये जुर्माना कर दिया। माफीकी मेरी दरखास्त अभी भी अनिर्णीत पड़ी है। यह सब पुलिसकी शरारतोंका नतीजा है। उसने चन्द बदमाशोंको अपनी तरफ कर लिया था। इस प्रकार सभी घटनाएँ एक ही दिन, एक ही स्थानपर हुई। उपद्रव दो दिन १४ और १५को-होते रहे। पहले दिन पुलिसने उपद्रवोंकी रोक-थामके लिए कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि उनको बढ़ावा दिया। दूसरे दिन कुछ-एक बार हवामें ही बन्दूकें दागी गईं और उपद्रव शान्त हो गया। बाहरसे पुलिस या सेनाकी किसी तरहकी मदद की भी जरूरत नहीं पड़ी। अगर पुलिस पहले दिन ही अपना फर्ज पूरा कर देती तो ऐसी घटनाओंकी नौबत ही न आती। हाफिजाबादकी इमारतोंको जो नुकसान पहुँचा, वह बहुत थोड़ेसे पैसोंमें ठीक कराया जा सकता था। लेकिन उसके हर्जानेके तौरपर नागरिकोंसे ६,००० रुपये वसूले गये। जनताको ही दाण्डिक पुलिसका खर्च भी भरना पड़ा, और इससे सम्राट्की गरीब प्रजाको बड़ी परेशानी हुई। (बयान ३८९)

ऐंग्लो संस्कृत स्कूलके हेड मास्टर लाला रामसहायको भी गिरफ्तार किया गया था। उनकी अनुपस्थिति में उनके मकानकी तलाशी ली गई। तलाशी रातके ११ बजे- तक होती रही। उनको गुजराँवाला जेल ले जाया गया और एक पखवारे बाद हाफिजा- बाद लाया गया। वे कहते हैं:

यहाँ मुझपर दबाव डाला गया कि मैं सरकारी गवाह बन जाऊँ पुलिस इन्स्पेक्टरने कोई शारीरिक यन्त्रणा तो नहीं दी, पर हर प्रकारका नैतिक दबाव