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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

स्कूली बच्चोंके लिए भी वैसे ही हुक्म जारी किये गये जैसे कि अन्य स्थानोंपर जारी किये गये थे। कुछ ब्रिटिश सैनिक दुकानोंसे तरह-तरहकी चीजें उठा लेते थे और उनके बदले एक कौड़ी भी अदा नहीं करते थे। यह गवाह २० अक्तूबरको श्री एन्ड्रयूजके साथ पुलिस इन्स्पेक्टरके घर गया और दाण्डिक पुलिस द्वारा जबरदस्ती रकम ऐंठनेके एक मामलेकी ओर उसका ध्यान आकर्षित किया, जिसके फलस्वरूप दो सिपाहियोंको बरखास्त और एक हवलदारको तनज्जुल कर दिया गया। श्री चोपड़ा अपने बयानके अन्त में कहते हैं कि वे ऑक्सफोर्डमें पढ़े हैं, १३ वर्षतक इंग्लैंडमें रह चुके हैं, वहाँ लन्दन में बनाये गये भारतीय आहत सहायक दल (इण्डियन एम्बुलेंस कोर) में भी वे शामिल थे, और उन्होंने कभी भी राजनीतिमें भाग नहीं लिया, लेकिन वे जनताके साथ हुई ज्यादतियोंसे उसे राहत दिलाने के लिए ही अपना बयान दे रहे हैं। (बयान ३९०)

लाला बलीराम कपूरको गिरफ्तार करके २३ और लोगोंके साथ हवालातकी १२ फुट चौड़ी और १५ फुट लम्बी एक कोठरी में बन्द कर दिया गया था। टट्टी-पेशाब भी सभीको उसी कोठरी में करना पड़ता था। ६ जूनतक उनको हवालातियोंकी तरह रखा गया था। (बयान ४०५, पृष्ठ ५४०)

फॉरेस्ट डिपार्टमेंटके एक अवकाश प्राप्त हेडक्लर्क सरदार मेवासिंहने झूठे गवाह भरती करनेके क्रूरतापूर्ण उपायोंका विवरण इन शब्दों में दिया है:

मुझे २१ अप्रैलको बिना वारंट गिरफ्तार किया गया । २२ अप्रैलको वारंट कटवाकर उसपर जिला मजिस्ट्रेटके दस्तखत करा लिये गये। दो दिनतक मुझे हाफिजाबादकी हवालातमें रखा गया, जो बहुत ज्यादा गन्दी थी। उसमें चार आदमी भी मुश्किलसे अँट सकते थे, पर २३ आदमी ठूंस दिये गये थे। हमको तरह-तरहसे परेशान किया गया, टट्टी-पेशाबकी हाजत होनेपर उसकी भी इजाजत नहीं दी जाती थी। इस कामके लिए एक बारमें दोको हथकड़ी पहनाकर बाहर ले जाते थे। कभी-कभी तो हमें हवालातमें ही पाखाना करना पड़ता था। २३ अप्रैल, १९१९को हमें गुजराँवाला डिस्ट्रिक्ट जेल भेज दिया गया। तेईसके-तेईस व्यक्तियोंको एक ही जंजीरसे बाँध दिया गया था, और हरएकको हथकड़ी पहना दी गई थी। हमें बड़ी सख्त निगरानीके साथ सशस्त्र सैनिक पुलिसके पहरे में ले जाया गया। रास्तेमें हमको टट्टी-पेशाब करने और पानी पीनेतक की इजाजत नहीं दी गई। हमारे साथ निचली श्रेणीके कर्मचारियोंका बरताव असह्य था। २३ मई, १९१९को हमें शिनाख्तके लिए फिर हाफिजाबाद लाया गया। हाफिजा-बादके रास्ते में पुलिसन हमारे साथ जो बदसलूकी की, उसका बयान नहीं किया जा सकता। गुजराँवाला जेलके सुपरिटेंडेंटन सात या आठ व्यक्तियोंको अपना बना खाना खानेकी इजाजत दे दी। जब हमें हथकड़ियाँ पहनाकर गुजरांवाला जेलसे बाहर लाया जा रहा था, तब जेलरन पुलिस सब-इन्स्पेक्टरसे कहा कि हमारा खाना तैयार है और हम लोगोंको खानेकी इजाजत दे दी जाये, लेकिन