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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लाला सुन्दरदास कहते हैं कि गिरफ्तारियोंके सिलसिले में रामनगरके लोगोंका तार भेजना भी अधिकारियोंको बुरा लगता था। ११ जूनको उनको अन्य लोगोंके साथ गुजराँवालामें डिप्टी कमिश्नरके सामने पेश किया गया और कर्नल ओ ब्रायनने रिहा करनेसे पहले उनको आदेश दिया कि वे "अपनी नाक रगड़कर जमीनपर लकीरें खींचें और अपने कियेपर पछतावा जाहिर करें। "(बयान, ४१९)

लाला हंसराज कहते हैं कि रामनगरका लम्बरदार अब्दुल्ला ८ मईको उनके पास आया और कहने लगा कि तुम अगर २०० रुपये नहीं दोगे तो अगले दिन सुबह तुमको गिरफ्तार कर लिया जायेगा। उन्होंने इसपर एतराज किया। वे कहते हैं:

मैंने अगले दिन सुबह देखा कि लम्बरदार अब्दुल्लाका भाई जरायमपेशा कौनके एक दूसरे आदमी के साथ मेरे दरवाजेपर लाठियोंसे लंस होकर डटा है।दरवाजा खोलते ही उन्होंने मुझे पकड़ लिया और बाजारकी तरफ घसीट ले गये।

लाला हंसराजने इतनेपर भी यह रकम देनेसे इनकार कर दिया। तब उनको जबरन पुलिस चौकी ले जाया गया। फिर वे बतलाते हैं कि किस तरह वहाँ उनसे सरकारी गवाह बननेको कहा गया और इनकार करनेपर किस तरह उनके और दूसरोंके खिलाफ सबूत गढ़े गये । लाला हंसराज १५ अप्रैलको वजीराबादमें थे और सवा पाँच बजे शामको ही अकालगढ़ पहुँचे थे। इसलिए उस दिन रामनगरके किसी जुलूस या प्रदर्शन में पुतला जलानेका जो समय बतलाया जाता है, उस समय उनका वहां मौजूद रहना मुमकिन ही नहीं था। (बयान ४१७, पृष्ठ ३५७)

लाला गोविन्द सहाय और दूसरे लोगोंको इसलिए गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने अपने मुकदमेके सिलसिले में डिप्टी कमिश्नरके पासतक जानेकी जुरंत की । उनको भी लाला सुन्दरदास की तरह ही परेशान करके छोड़ दिया गया। (बयान ४२३ और ४२४)।

लाला रामचन्द बतलाते हैं कि सरकारने पहले जो यह किस्सा गढ़ा था कि पुतलेको एक बड़े जुलूसमें निकाला गया और मनों लकड़ियोंसे उसे जलाया गया; पर उसे बाद में यों बदल दिया गया और यह कहना शुरू किया गया कि कपड़ेका एक गुड्डा बनाकर जलाया गया था। (बयान ४२५)

एक अवकाश प्राप्त स्टेशन मास्टर सैयद हकीम शाह बतलाते हैं कि सरकारने अपना किस्सा कैसे बदला। वे खुद भी उस शामको नदी किनारे गये थे और उनको वहाँ कोई भी जलती चीज दिखाई नहीं पड़ी थी, पर २२ मईको उनसे कहा गया कि वे सरकारी गवाह बनें। उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया और इसपर उनके साथ बुरा सलूक किया गया। उन्होंने ३७ सालतक रेलवे विभागमें सेवा की है। (बयान ४३२)

पुतला जलाने के मुकदमे में भगवानदास मुखबिर था। अब उसने एक लम्बा बयान दिया है; सरकारकी तरफसे दी गई अपनी गवाहीकी सचाईसे इनकार किया है और वे हालात बतलाये हैं जिनकी वजहसे मजबूर होकर उसे वैसी गवाही देनी पड़ी थी। (बयान ४४३)