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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

करनेवाली कोई सूचना हो तो वह हमें दे। इसलिए रामनगरके मैदान में ३० नवम्बर, १९१९को एक सार्वजनिक सभा बुलाई गई। सभामें उन लोगोंको, जो मानते हों कि सम्राट्का पुतला जलाया गया या जिनको इसके बारेमें कोई जानकारी हो, आमन्त्रित किया गया कि वे चाहे सार्वजनिक रूपसे या व्यक्तिगत तौरपर अपने बयान दें। लेकिन एक भी ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आया जो कह सकता कि सम्राट्का वैसा अपमान किया गया था। हमें पूरा भरोसा है कि वह आरोप बिल्कुल ही मनगढन्त था। हमारे इकट्ठे किये हुए बयानोंसे पता चलता है कि किसी भी पुलिस अधिकारीने २३ अप्रैलतक ऐसे किसी मामलेका कोई जिक्र नहीं किया। कर्नल ओ ब्रायनका फैसला हमने पूरी तौरपर पढ़ लिया है। उसमें कहा गया है कि इस घटनाके उल्लेख में विलम्ब होनेका कारण पुलिसका अत्यधिक व्यस्त रहना ही था । यह दलील तो बिलकुल ही समझ में नहीं आती। कमसे-कम पुलिसकी डायरीमें तो वह दर्ज होनी ही चाहिए थी । १७ अप्रैलको पुलिस इन्स्पेक्टर सारे रामनगर में घूमता रहा, पर उसने भी इस घटनाका कहीं कोई जिक्र नहीं किया है। इस काण्डकी जिम्मेदारी जिस नेताके मत्थे मढ़ी गई है, वह गांवमें मौजूद होनेपर भी ९ मईतक गिरफ्तार नहीं किया गया।

फिर भी रामनगरकी जनतापर एक झूठा आरोप लगाकर उसे हैरान ही नहीं किया गया, बल्कि अच्छेसे-अच्छे लोगोंपर मनमाने ढंगसे मुकदमे चलाये गये, उनको कड़े दण्ड दिलाये गये। वादी पक्षकी ओर से जो भी शहादतें पेश की गई सभी गढ़ी हुई थीं, और सुनवाईके दौरान न्याय-प्रक्रिया के सभी जानेमाने सामान्य उसूलोंको ताकमें रख दिया गया था।

साठ वर्षीय लाला करमचन्द स्वभावसे ही धार्मिक प्रवृत्तिके व्यक्ति हैं और एक तरहसे निवृत्त जीवन बिता रहे हैं। उनको भी इस सबका शिकार होना पड़ा । २७ अन्य लोगोंके साथ उनपर भी मुकदमा चलाया गया और उन्हें सजा दे दी गई। वे १८७७ से १९०० तक डाक और रेलवे विभागों में सरकारी कर्मचारी थे । १९१० के बाद उन्होंने "सांसारिक बातोंसे एक तरहसे संन्यास ले लिया था। " वर्षके ९ महीने वे हरद्वारमें बिताते हैं। वे इस बातसे इनकार करते हैं कि पुतलेका कोई जुलूस निकाला गया था, या पुतला जलाया गया था । इतना वे स्वीकार करते हैं कि १५ अप्रैलको कुछ लड़के बाजारसे "हाय, हाय, रौलट बिल" चिल्लाते हुए निकले थे। उनका कहना है कि १७ अप्रैलको एक सब-इन्स्पेक्टर रामनगर गया और उसने दर्ज किया कि वहां हड़तालके अलावा कोई वारदात नहीं हुई। २३ अप्रैलको माल-अफसर रामनगर गया और जैलदारसे सलाह-मशविरा करनेके बाद कुछ और लोगोंके साथ लाला करमचन्दको जाँचके बहाने अकालगढ़ भेज दिया। २४ अप्रैलको उनको हथकड़ियाँ पहनाकर गुजरांवाला भेज दिया गया और १६ मईतक उनको जेलमें रखा गया । तबतक उनको बिलकुल पता नहीं था कि उन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया । १७ मईको उन्हें रामनगर वापस लाया गया । १९ तारीखको उनसे अपनी सफाईके गवाहोंके नाम देनेके लिए कहा गया और २२ तारीखको उनकी पेशी हुई, जिसके फैसलेके बारे में हम बतला ही चुके हैं। (बयान ४२२)