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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

जो भी हो, २२ अप्रैलको डिप्टी कमिश्नरने आकर नहरके पुलपर डेरा डाल दिया और कस्बेके लोगोंको बुला भेजा। उन्होंने गाँववालोंसे डाक बँगलेतक सड़ककी मरम्मत करनेके लिए कहा और हुक्म दिया कि सड़ककी जल्द ही ऐसी मरम्मत हो जानी चाहिए कि उनकी मोटर आसानीसे गुजर सके। इस मरम्मतके लिए लोगोंसे करीब दो हजार रुपये इकट्ठे किये गये और एक मीलसे अधिक लम्बी सड़ककी खास तौरसे ऐसी मरम्मत करनी पड़ी जिससे डिप्टी कमिश्नरकी गाड़ी गुजर सके। उस छोटेसे कस्बेसे इतनी बड़ी रकम एक ही दिन में वसूल की गई। इस तरह यह वसूली सिद्धान्तकी दृष्टिसे गैर-कानूनी और आपत्तिजनक ही नहीं थी, बल्कि अकालगढ़-जैसे एक गरीब और मामूली कस्बके लिए भारी और अन्यायपूर्ण भी थी।

इसके बाद यहाँ, गुजरांवाला और वजीराबादकी तरह ही, प्रमुख नागरिकोंकी गिरफ्तारियाँ हुई। ३० अभियुक्तोंके एक जत्थेपर मुकदमा चलाया गया, जिनमें से २० को बरी कर दिया गया, पन्द्रह-पन्द्रह वर्षके दो लड़कोंको एक-एक दिनकी सादी कैदकी सजा दी गई, ६ को सजाएँ सुनाई गईं और २ अभियुक्तोंपर से मुकदमे वापस ले लिये गये।

हमको जो बयान मिले हैं उनमें गवाहोंको संत्रस्त करने, लगभग दो महीने तक अकालगढ़में भ्रष्टाचार और आतंककी तूती बोलनेकी इतनी ब्योरेवार कहानियाँ भरी पड़ी हैं कि उनपर विश्वास न करना कठिन है। हम उन शर्मनाक घटनाओं के चन्द नमूने यहाँ पेश करते हैं।

नानकचन्दको पुलिस चौकीपर बुलाकर झूठी गवाही देनेके लिए कहा गया। उनके इनकार करनेपर "उन्हें आधा घंटेतक धूपमें खड़ा रखा गया।" उन्हें गालियाँ दी गईं। उनसे कहा गया कि अगर वे झूठी गवाही नहीं देंगे तो उन्हें गोलीसे उड़ा दिया जायेगा। इसपर उन्होंने पुलिस जैसा चाहती थी वैसा बयान दे दिया। लेकिन वे कहते हैं कि अदालतके सामने उन्होंने सच्ची गवाही दी। साथ ही, उन्होंने कहा है कि दूसरे लोगों के साथ भी वैसा ही सलूक होते देखा । लोगोंको डाक बँगलेपर जमा होनेके लिए मजबूर किया गया। उन्हें सैनिक अफसरोंके लिए बिना किसी कीमतके दूध पहुँचाना पड़ा।" (बयान ३४३ से ३४५ तक)

ऊपर जिन दीवान गोपाललालका जिक्र आया है, उनको २२ अप्रैलको गिरफ्तार किया गया। उनको दो महीनेतक जेलमें नजरबन्द रखा गया और अन्तमें सबूत न मिलनेपर छोड़ दिया गया। वे कहते हैं:

मुझे इसलिए गिरफ्तार किया गया कि रेवेन्यू 'असिस्टेंट' और साहब खाँने जलवार और चौधरी गुलाम कादिर तथा सरदार खाँके जरिये जो रिश्वत माँगी थी उसे वेनेसे मैंने इनकार कर दिया था। में जब जेलमें था, तब उन्होंने मेरे रिश्तेदारोंसे बतौर रिश्वत मेरी खातिर ५,००० रुपये और मेरे साले [ बहनोई?] की खातिर १,००० रुपये लिये। (बयान ३४०, पृष्ठ ४६८)

एक पन्द्रह वर्षीय विद्यार्थी, रामलालको २३ अप्रैलको गिरफ्तार किया गया और १३ मईको छोड़ दिया गया। (बयान ३४२)