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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

घरसे बाहर निकलने के वक्त क्या पहनती हैं। और फिर सरदार जमीयतसिंह वजीरा- बादके एक प्रतिष्ठित नागरिक हैं। वे सिखों के नेता हैं। उन्होंने युद्धके दौरान बड़ा शानदार काम किया था और उनको कमाण्डर-इन-चीफसे एक सनद भी मिली थी । सरदार जमीयतसिंहने २६ अप्रैलको वापस लौटते ही अधिकारियोंके सामने आत्म- समर्पण कर दिया, लेकिन जब्तीका हुक्म ४ मईतक वापस नहीं लिया गया। हमने उनके मुकदमेका रेकर्ड, वह जैसा उपलब्ध है, देख लिया है और हमारे सामने जो अन्य अनेक कागजात पेश किये गये हैं वे भी देखे हैं, और हमें इसमें जरा भी शक नहीं कि उनको सजा देना बहुत ही गलत था। पहले तो उनका अभियोग-पत्र ही उनको नहीं दिखाया गया। उनका वकील उसकी कोई प्रमाणित प्रति हासिल नहीं कर पाया और न सफाईके सभी गवाहोंको ही बुलाया गया। सरदार जमीयतसिंहकी अवस्था ६२ वर्ष है। उनकी एक आँख में मोतियाबिन्द है। उनके साथ भी आम किस्मके बदमाशों- जैसा व्यवहार किया गया और कुछ दिनोंतक उन्हें तनहाईमें भी रखा गया।

अन्य स्थानोंकी अपेक्षा यहाँ गिरफ्तार किये गये लोगोंका मुकदमा और भी ज्यादा तमाशा था । सबूत किस तरह गढ़ा गया, इसका सजीव वर्णन नीचे देखिए:

डुग्गी पिटवाकर सभी नागरिकोंको पुलिस थानेमें बुलवाया गया। नाबालिगों और बदमाशों (रजिस्टर में दर्ज) को मुखबिर मान लिया गया। पुलिस जिसके भी खिलाफ मुकदमा खड़ा करना चाहती थी उसको ऐसे लड़कोंके सामने लाया जाता था जिन्हें झूठी शहादत देनेके लिए सिखा-पढ़ा दिया जाता था और इस तरह उस बेचारेको फँसा दिया जाता था । उन्हीं लड़कोंको गवाहोंकी तरह सैनिक अदालतोंके सामने पेश किया जाता था, और सिर्फ उनकी गवाहियोंपर ही लोगोंको सजा सुना दी जाती थी। (बयान ३१३, पृष्ठ ४४४)

निजामाबाद

वजीराबादसे करीब मील-भर दूर एक छोटा-सा गाँव है--निजामाबाद।पूरा गाँव एक सँकरी गलीके दोनों ओर मकानों और शिल्पशालाओंकी एक मिली-जुली बस्तीके रूप में बसा है। यह स्थान अपने यहाँकी छुरी-चाकूके लिए प्रसिद्ध है, जिनको दस्तकारोंके परिवार बड़े ही पुराने किस्मके औज़ारोंसे पीढ़ी-दर-पीढ़ीसे तैयार करते आ रहे हैं। जैसा कि पहले कहा जा चुका है इसमें शक नहीं कि निजामाबादके कुछ लोग श्री बेलीके मकान में आग लगानेवाली भीड़में शामिल थे, पर बेचारे सभी गाँव- वालोंको चन्द लोगोंके अपराधके लिए जो सजा दी गई, वह उनके अपराधको देखते हुए हर तरहसे बहुत ज्यादा थी । १८ अप्रैलको ब्रिटिश सैनिकोंकी एक विशेष ट्रेन लाहौरकी तरफसे आकर गाँवके पास रुकी। गाँव रेलवे स्टेशनके पास ही है। सैनिकोंने गाँवको घेर लिया। उन्होंने दुकानें लूटीं, आटा, घी और गुड़ अपने कब्जेमें ले लिया और उस सब मालको ट्रेनतक ढोनेके लिए गाँववालोंको मजबूर किया । करीब एक पखवारेतक लोगोंको पुलिस चौकी जाकर वहाँ ७ बजे सुबहसे ८ बजे शामतक दिन- भर धूप में बैठनेपर विवश किया गया । लोगोंको अपनी शिल्पशालाएँ बन्द कर देनी पड़ीं। (बयान ३२९)