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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

और उसने खड़े होकर सैनिकोंको सलामी नहीं दी, इसीलिए उसको बेंत खाने पड़े। चूँकि उसकी पीठ सड़ककी तरफ थी, इसलिए उसने सैनिकोंको देखा नहीं था। (बयान ३०५ और २९०, २९३, २९८, ३०० और ३०१ भी)। विद्यार्थियोंको रोज ही यूनियन जंकको सलामी देनी पड़ती थी।

प्रतिष्ठित लोगोंको बाजारकी नालियाँ साफ करनी पड़ती थीं, हालांकि उनमें से कुछ नालियोंको नगरपालिकाका जमादार पहले साफ कर चुका होता था। (बयान ३०४)

लोगोंको लाठी लेकर चलनेकी मनाही थी। कुछ दिनोंके लिए रेल-यात्रा भी बन्द कर दी गई और कर्फ्यू आदेश निकाल दिया गया। इस प्रकार जनताको बिल्कुल ही असहाय बना दिया गया था।

इसके बाद मार्शल लॉ न्यायाधिकरणों और सरसरी जांच अदालतों में मुकदमे शुरू हुए और इन मुकदमोंपर भी वे सभी बातें लागू होती हैं जो अमृतसरमें चलनेवाले मुकदमोंके बारेमें कही गई है। सबूत गढ़ा गया था---इसके यथेष्ट प्रमाण मौजूद हैं। अधिकारीगण जो इस बातपर जोर दे रहे कि वहाँ बगावतकी स्थिति मौजूद थी, वह लॉर्ड हंटरकी समितिके सामने लगभग बिलकुल निराधार साबित हुई। कर्नल ओ'ब्रायनको बगावतकी स्थिति साबित करने के लिए सिर्फ इतना ही कहना था कि यह स्थिति न्यायिक रूपमें सिद्ध" हो गई थी। लगभग प्रत्येक नेताको गिरफ्तार कर लिया गया। दीवान मंगलसेन और उसके परिवारके साथ किया गया सलूक, लाला अमरनाथके मकानको बदलेकी भावनासे खाली करवाना, लोगोंको गिरफ्तार और नजरबन्द करना और उनपर कोई मुकदमा न चलाना--यह सारी कहानी एक सोच- समझकर की गई क्रूरताकी कहानी है, जो ब्रिटिश प्रशासनके नामपर कलंक है।

वजीराबाद

वजीराबाद एक दूसरा महत्त्वपूर्ण स्टेशन है, जो बड़ी लाइनपर गुजरांवालासे २० मीलकी दूरीपर स्थित है। यह जकंशन भी है। यह एक छोटा-सा कस्बा है, जिसकी आबादी लगभग १०,००० है। हर साल वहाँ बैसाखी मेलेके अवसरपर आस- पासके गाँवों और इलाकोंसे बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे होते हैं। वहीं पिछली ३० मार्च या ६ अप्रैलको कोई हड़ताल नहीं हुई, लेकिन वहां जो लोग इकट्ठे हुए थे वे साथ में लाहौर, अमृतसर और गुजरांवालाकी घटनाओंकी खबरें भी लाये थे। आसपासके गाँवोंसे आनेवाले लोगोंने वजीराबादियोंको हड़ताल न करनेपर ताने मारने शुरू किये। उन्होंने कहा कि "वजीराबादके लोगोंने हड़ताल नहीं की, इसलिए अब कोई भी उनकी लड़- कियोंसे विवाह नहीं करेगा।" (बयान ३१२, पृष्ठ ४३४) । हड़ताल करने-न-करनेके प्रश्नपर विचार करनेके लिए १४ तारीखको वहाँकी मसजिदमें एक सभा हुई। १५ तारीखको हड़ताल हुई, लेकिन कुछ शरारती लोग भी थे जो सिर्फ काम बन्द होने से सन्तुष्ट नहीं थे। उन्होंने तमाम घटनाओंकी जो अतिरंजित कहानियाँ सुनी थीं, वे उनके दिलों में काँटोंकी तरह गड़ रही थीं। फलतः वे भी तार काटने और रेलकी पटरियाँ उखाड़नेके लिए चल पड़े। उनमें से कुछ इसके बाद रेवरेंड श्री बेलीके मकानकी