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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस समयतक अपनी जरूरतसे कहीं ज्यादा सैनिक कुमक प्राप्त हो चुकी थी, उन्होंने जितनी कुमक माँगी थी उतनी तो अवश्य ही मिल चुकी थी।

लगता है कि हवाई जहाजोंसे बमबारी करनेका सुझाव मूलत: सर माइकेल ओ'डायरने दिया। और उन्होंने ऐसा सुझाव दिया हो या नहीं; लेकिन इसमें तो कतई सन्देह नहीं कि उन्होंने इसकी ताईद की। यह नहीं भूलना चाहिए कि पंजाबकी जनता हवाई जहाजों द्वारा या अन्य किसी प्रकारसे भी की जानेवाली बमबारीकी अभ्यस्त नहीं थी। स्वीकार किया जाना चाहिए कि हवाई जहाजों द्वारा बमबारीका औचित्य तो तभी हो सकता है जब कोई बड़ी जरूरत सामने आ पड़ी हो, कोई बड़ा या आसन्न खतरा उपस्थित हो; हवाई जहाज जब गुजरांवाला पहुँचे तबतक तो सारा खतरा टल हो चुका था। हवाई जहाजोंकी मौजूदगी मात्र ही पर्याप्त सुरक्षा थी। गुजरांवालाके यूरोपीय लोगोंको कोई खतरा नहीं था। एक भी यूरोपीयकी जान नहीं गई। बमबारीकी सैनिक आवश्यकता सिद्ध करनेके लिए कोई प्रमाण नहीं जुटाया गया है। सरकार द्वारा जुटाये गये साक्ष्यसे ही स्पष्ट है कि बिल्कुल ही शान्त जनता- पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी ओर बमबारी की गई थी और वह भी ऐसे समय जब जान-मालका बिल्कुल खतरा नहीं था और अमृतसर तथा कसूरके अनुभवोंसे स्पष्ट हो गया था कि जन-समूहका क्रोध अचानक ही थोड़े समयके लिए भड़क उठा था, उसमें जमकर लड़ने की कोई प्रवृत्ति नहीं थी। १५ तारीखको बैरिस्टरों, वकीलों और अन्य नेताओंकी अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ शुरू हो गईं। उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे, जिनके बारे में अधिकारी जानते थे कि उन्होंने अपनी जानपर खेलकर भीड़का क्रोध शान्त करने में सहायता दी थी। खुद कर्नल ओ ब्रायनके कथनानुसार जब ये गिरफ्तारियाँ की गईं उस समय ऐसे कोई सबूत नहीं थे जिनसे उनका औचित्य सिद्ध होता । उनके कथनानुसार ये गिरफ्तारियाँ भारत प्रतिरक्षा अधिनियम (डिफेन्स ऑफ इंडिया ऐक्ट) के विनियमोंके विनियम १२ के अन्तर्गत की गई थीं। इस विनियममें व्यवस्था यह है कि पक्का सन्देह होनेपर ही किसी व्यक्तिको गिरफ्तार किया जा सकता है। कर्नल ओ'ब्रायनके दिमाग में जिस एक विनियमको बात थी, वह तो निम्नलिखित विनियम ही हो सकता है:

लेफ्टिनेंट गवर्नर डिफेन्स ऑफ इंडिया कन्सॉलिडेशन रूल्स, १९१५ के नियम १२ ए० ए० द्वारा प्रदत्त सत्ताका प्रयोग करते हुए सभी कमिश्नरोंको प्राधिकृत करता है कि वे किसी भी व्यक्तिको बिना वारंट गिरफ्तार कर सकते हैं जिसपर सरकारकी सत्ताके खिलाफ विद्रोहकी भावना फैलाने या उसमें सहायता देनेका उचित सन्देह हो।

यदि उनके दिमाग में इसी विनियमकी बात थी तो वे स्वयं एक डिप्टी कमिश्नर होते हुए इसके अन्तर्गत गिरफ्तारियाँ नहीं करा सकते थे। और फिर ऐसे व्यक्तियोंको गिरफ्तार करना, जिनके किसी गलत कामकी जानकारी डिप्टी कमिश्नरको नहीं थी, या कमसे-कम उस समयतक नहीं थी, इस नियमके अर्थके साथ खींचतान करना ही था।