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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धम कांग्रेसकी रिपोर्ट

उन्हें मारनेकी जरूरत ही क्या थी?"-इस प्रश्नका उसने तुरन्त उत्तर दिया:और ज्यादा नुकसान पहुँचाने के लिए।

प्र०-लगता है आपका मंशा उस भीड़के और ज्यादा लोगोंको गोली मारने या उनकी हत्या करनेका था, यद्यपि भीड़ तितर-बितर होने ही लगी थी और लोग बमबारीके बाद भागने लगे थे?

उ०-मैं उनके हितकी वृष्टिसे ही वैसा कर रहा था। मैंने यह भी समझ लिया था कि यदि में उनमें से कुछको जानसे खत्म कर दूंगा तो फिर वे दूसरी बार जमा होकर नुकसान नहीं पहुँचायेंगे।

सर चिमनलालका अगला प्रश्न था:"ऐसा करने में आपका मंशा एक तरहका नैतिक प्रभाव डालनेका था न? "बिल्कुल शान्त भावसे इसका उत्तर दिया गया: "जी हाँ, बिल्कुल यही था।" अधिकारीने इसके बाद एक दूसरे गाँवपर मशीन- गनोंसे गोलीबारी की। वहाँ उसने उन लोगोंकी भीड़पर गोली चलाई जो गुजरांवालासे लौटकर अपने गाँव जा रहे थे। हमारे पास जो सबूत हैं, उनसे पता चलता है कि अधिकारीने जिस तरहकी भीड़का हवाला दिया है, वैसी भीड़ वहां नहीं थी। वहाँ तो लोगोंके छुट-पुट समूह थे और वे लोग सर्वथा निर्दोष थे। यह तो एक मानी हुई बात है कि वे सब बिल्कुल निहत्थे थे। गुजराँवालाकी भारतीय बस्तियोंपर गोली चलानेका उद्देश्य यह था कि जनता सड़कोंपर न निकले। “वतनी लोगोंके नगर" में डेढ़ सो राउंड" गोलियां बरसाई गईं। और अधिकारीने सर चिमनलालको अपनी बात पूरी स्पष्टतासे समझाने के लिए कहा कि:"आपको यह भी साफ समझ लेना चाहिए कि मकानोंपर गोली चलानेका तो कोई लाभ था नहीं। मैं तो वतनी लोगोंके शहरमें वतनियोंपर गोली चला रहा था।"

हमारी राय में हवाई जहाजोंसे की गई यह सारी गोलीबारी बिलकुल अनुचित थी। यह गोलीबारी शुरू तब की गई, जब जन-समूह बरबादी कर चुका था और भीड़ छँट चुकी थी। इसलिए सम्पत्तिकी और अधिक बरबादी रोकनेका तो कोई प्रश्न ही नहीं था। हमारा यह भी विश्वास है कि गोलीबारी यदि बदलेकी भावनासे न भी की गई हो, पर वह अविवेकपूर्ण अवश्य थी, और अफसरोंके अपने ही वक्तव्योंके अनुसार गाँववालोंकी जिन्दगीका उनकी निगाहमें कोई मोल नहीं था और उन्होंने लोगों को आतंकित करनेके लिए उनपर गोलीबारी की। हमें जो सूची दी गई है और जो बयानों- में भी शामिल कर ली गई है, उसके अनुसार इसमें १२ लोग मारे गये, और २४ जख्मी हुए थे। अगर और ज्यादा लोगोंको जानसे हाथ नहीं धोना पड़ा तो उसमें सम्बन्धित अधिकारियोंका कोई दोष नहीं, क्योंकि उन्होंने अपनी ओरसे कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। वह तो कहिए कि बम फटे ही नहीं।

१४ तारीखकी बमबारी तो अकारण श्री ही, लेकिन १५ तारीखको हवाई जहाजोंकी सहायता लेनेका तो उतना भी औचित्य नहीं था। कारण, कर्नल ओ'ब्रायनको