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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और न वहाँ कोई सभा ही हो रही थी। हमें लगता है कि खालसा बोडिंग हाउसपर बम गिराने की कोई आवश्यकता नहीं थी, और यह तो भाग्यकी बात थी कि उससे किसीकी जान नहीं गई।

सम्बन्धित अधिकारियोंके बयान इस विषय में बड़े दिलचस्प है कि उन्होंने बम किस प्रकार गिराये और कैसे मशीनगनें चलाई। पहले जहाजोंने मशीनगनोंसे गोली- वर्षा की, जब लोग डरकर अपने गाँवोंकी ओर भागने लगे, तब उनपर बम गिराये गये।' हंटर समिति और सम्बन्धित अधिकारीके बीच हुआ प्रश्नोत्तर देखिए:

प्र०- क्या पहले आपने बम गिराये, और लोग गाँवकी ओर भागन यही न?

उ०-जी हाँ।

प्र०-अर्थात् गाँवके मकानोंपर?

उ०-जी हाँ। मेरा खयाल है कि कुछ गोलियाँ मकानोंमें भी लगी थीं।

प्र०-लोग भाग रहे थे और वे तितर-बितर होकर घरोंमें घुस गये थे?

उ०-जी हाँ।

प्र०-आपने गाँवोंपर मशीनगन चलाईं; तब हो सकता है कि आपकी गोलियाँ उन लोगोंको न लगकर जिन्हें आप तितर-बितर कर रहे थे, मकानोंमें मौजूद दूसरे बेकसूर लोगोंको लगी हों?

उ०-मैं बेकसूर लोगों और दूसरे लोगोंके बीच भेद नहीं कर सकता था। मैंने उन लोगोंको गोलियाँ मारने की कोशिश की, जो भाग रहे थे और जिनके बारेमें मैंने समझा कि वे नुकसान करनेके लिए आ रहे थे।

प्र०-बमबारीका नतीजा यह हुआ कि वे तितर-बितर हो गये?

उ०-जी हाँ।

प्र०-क्या वे गाँवोंमें भाग गये?

उ०-जी हाँ।

प्र०-क्या आपका उद्देश्य पूरा नहीं हुआ था?मशीनगनोंसे गाँवोंपर अन्धाधुन्ध गोलियां चलाने की क्या आवश्यकता थी?

उ०-मशीनगनोंसे अन्धाधुंध गोलियाँ नहीं चलाई गई। मैंने गोलियाँ उन लोगोंपर चलाई, जो भाग रहे थे। मैं कह चुका हूँ कि भीड़ तितर-बितर हो गई थी और गाँवोंकी ओर भागने लगी थी। मैंने उन्हीं लोगोंपर गोलियाँ चलाई।

इस अधिकारीका कहना है कि वह २०० फुट ऊँचे एक स्थानपर खड़ा था। वह सब-कुछ "बहुत अच्छी तरहसे" देख सकता था। उनपर मशीनगनें चलाने और

१. घारजक, भगवानपुरा, धुल्ला और आसपासके अन्य गाँवोंपर मशीनगनसे गोलियाँ बरसाई गई थीं या बम गिराये गये थे।