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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विश्वासने दोनों मजहबोंके लोगों को एक दूसरेके और भी निकट ला दिया। इससे उत्ते- जित होकर एक जन-समूह स्टेशन के पासवाले रेलवे पुलकी ओर चल पड़ा। इसी बीच लाहौरकी तरफसे आनेवाली वजीराबादकी एक ट्रेन वहाँ पहुँच गई थी। ट्रेनके एक खान- सामाने १३ तारीखके हत्याकांडका समाचार उनको सुनाया। ट्रेन छुट्टियोंपर जानेवाले मुसाफिरोंसे ठसाठस भरी थी। भीड़में से कुछ लोग जाहिरा तौरपर ट्रेनको आगे जाने- से रोक देनेपर तुले हुए थे । लगता है कि इन लोगोंने ट्रेनपर कुछ पत्थर भी फेके । इसके बाद उन्होंने गुरुकुल पुलमें आग लगानी शुरू कर दी। लेकिन किसीने भी इसकी जमकर कोशिश नहीं की। जिस समय यह सब हो रहा था, उसी समय गुरुकुलके प्रबन्धक, लाला रलियाराम, बैरिस्टर श्री लाभसिंह, वकील श्री दीन मुहम्मद और कुछ अन्य लोग खतरेका अन्देशा देखकर घटनास्थलकी ओर बढ़े। उसी समय एक यूरोपीय अधिकारीको भी कुछ सिपाहियोंको लेकर पुलकी तरफ जाते देखा गया। गुरुकुलके कर्मचारियोंने उपर्युक्त भारतीय सज्जनोंकी सहायतासे आग बुझा दी। पुलिस सुपरि न्टेन्डेन्टने इस सिलसिले में बड़ी विचित्र बात कही:"आग बुझाना पुलिसका काम नहीं था, उसका कर्तव्य तो सरकारी सम्पत्तिकी रक्षा करना था।'(बयान २८२)

इसके बाद भीड़ स्टेशनके दूसरी ओरके काची पुलकी तरफ बढ़ी। यहाँ पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट श्री हैरन भीड़को तितर-बितर करने की कोशिश कर रहे थे, और उन्होंने भीड़पर गोली चलवा देना ही ठीक समझा। गोलियाँ चलीं और कई लोग हताहत हुए। इस बीच नेतागण भीड़को काबू में रखने और उसे कस्बेसे बाहर न जाने देनेके लिए प्रयत्नशील थे। उन्होंने इसी उद्देश्यसे एक सभाका आयोजन किया था और वह सभा काफी सफल होती दिख रही थी और शायद पूरी तौरपर सफल हो भी जाती, लेकिन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो गई। जख्मी लोगोंको, हमारा खयाल है उनके प्रति जनताको सहानुभूति जगानेके लिए ही, सभामें ले आया गया। यह प्रयत्न पूरी तौरपर सफल रहा। सभा उठ गई और बदला लेनेपर आमादा एक भीड़ स्टेशन की तरफ बढ़ चली। एकके बाद एक बेशकीमती सम्पत्तिको मटियामेट कर दिया गया। उनमें चर्च, डाकघर, तहसील, कचहरी और रेलवे स्टेशन भी शामिल थे। लगता है कि पुलिस सिर्फ दर्शकोंकी तरह खड़ी देखती ही रही, उसने इस आगजनी इत्यादिको रोकनेकी कोई कोशिश नहीं की। हमारे पास जो बयान हैं उनमें तो यहाँ- तक कहा गया है कि पुलिसने जन-समूहको आगजनीके लिए भड़काया भी था,और उन बयानोंमें जो सबूत मौजूद हैं उनसे इस कथनका समर्थन ही होता है।

कर्नल ओ'ब्रायन उलटे पाँव गुजरांवाला लौट आये। लगता है कि उन्होंने लाहौर टेलीफोन किया था कि उनको इतने व्यापक अधिकार दे दिये जायें कि वे जो भी ठीक समझें कर सकें। सर चिमनलाल सीतलवाडने जब उनसे जिरहके दौरान पूछा कि उनको कौन-कौन-सी सत्ता प्राप्त थी, तो उन्होंने कहा:“ मैंने १५ तारीखको फोन- पर मुख्य सचिवसे बात की थी। मैंने उनसे कहा कि मुझे कुछ कदम उठाने पड़ सकते हैं और मुझे उम्मीद है कि यदि ये कदम ठीक नीयतसे उठाये जायेंगे तो बादमें उनको कानूनी करार दे दिया जायेगा।" सर चिमनलाल सीतलवाडने पूछा : "लेकिन फोन तो