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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

कि उपवास न होने देनेके लिए भी भरसक प्रयत्न किया, और हड़ताल रोकनेके लिए अधिकारियोंकी ओरसे और स्वयं अधिकारियों द्वारा भी काफी दबाव डाला गया।

पहले ही कहा जा चुका है कि १२ तारीखतक वातावरण बिल्कुल शान्त था। लेकिन गुजरांवालामें एकाएक खबर पहुँची कि श्री गांधीको गिरफ्तार और निष्कासित कर दिया गया है, और डा० सत्यपाल और डा० किचलूको भी गिरफ्तार करके देश- निकाला दे दिया गया है। और अमृतसर तथा लाहोरकी १० तारीखकी घटनाओंका समाचार भी उसी समय पहुँचा। इसे लेकर गुजराँवालाके साधारण जन और नेतागण भी विचार करने लगे कि दूसरी हड़ताल कहांतक उचित रहेगी। इस बार हड़ताल गिरफ्तारियोंके विरोधमें और लाहौर तथा अमृतसरकी गोलीबारी में जानसे हाथ धोने और जख्मी होनेवाले लोगोंके प्रति सहानुभूति व्यक्त करनेके लिए की जानी थी। नेताओंने इसके लिए आपसी तौरपर एक बैठक की और लगता है कि काफी बहस- मुबाइसेके बाद यही निष्कर्ष निकाला कि हालाँकि ऐसे तनावके वातावरण में हड़ताल करना खतरेसे खाली नहीं होगा, लेकिन चूंकि जनताके जोशको काबू में रखना सम्भव नहीं हो सकेगा इसलिए अगर हड़ताल हो तो वैसी स्थितिमें हड़तालियोंको किसी प्रकार व्यस्त रखने के लिए खुले मैदान में सभाका आयोजन करके उनका ध्यान बँटाना चाहिए। अधिकारियोंने इस बार फिर हड़ताल रोकनेकी नाकामयाब कोशिश की । १४ तारीखको फिर मुकम्मल हड़ताल रही।

उन दिनों बैसाखीकी छुट्टियाँ थीं, इसलिए १३ तारीखको और उसके आस-पास गुजरांवालामें छुट्टियाँ मनानेवालोंकी खासी भीड़ इकट्ठी हो गई थी और छुट्टियाँ मनाने- वाले लोग तो कहीके भी हों, उनको शराबके दौर चलानेसे अक्सर कोई परहेज नहीं होता और इस अवसरपर तो और भी नहीं था। इस प्रकार १४ तारीखको हमें गुजरांवाला- के वातावरणमें वे सभी चीजें मिलती हैं, जो जन-समूहको अनियन्त्रित बनाती हैं- जैसे कि छुट्टियोंकी 'जो तबीयत आये सो करो' वाली मनःस्थिति, शराब, सरकारकी हरकतपर गुस्सा, दूसरे स्थानोंपर जनता द्वारा की गई ज्यादतियोंकी जानकारी और निठल्लापन।

सुबह-सुबह एक अफवाह उड़ गई कि स्टेशन के पास रेलवे पुलपर मरा हुआ बछड़ा टाँग दिया गया है। इसमें शक नहीं कि किया जिसने भी हो, यह काम बहुत ही अवि- वेकपूर्ण था, जिसका मंशा हिन्दुओंकी निम्नतम भावनाओंको उभारना था। इसके बारेमें कई अटकलें लगाई जाती हैं। हमें जो कुछ बतलाया गया उसमें एक बात यह है कि पुलिसने हिन्दुओं और मुसलमानोंको आपस में एक न होने देने के लिए ही वह काम कराया था। गुजरांवालाके लोगोंने जो बयान दिये हैं, उनमें यह बात काफी साफ हो गई है। अधिकारी लोग शरारत करनेवालोंका पता नहीं चला सके हैं। इसमें तो शककी गुंजाइश ही नहीं कि यह काम उन्हीं लोगोंका था जो हिन्दुओं और मुसलमानोंमें फूट पैदा कराना चाहते थे। लेकिन नतीजा बिलकुल दूसरा ही निकला । जनताने तो साफ-साफ यही माना कि अधिकरियोंके इशारेपर ही मरा हुआ बछड़ा टाँगा गया है, खास तौरले इस आधारपर कि किसीने मस्जिद में सूअरका माँस भी फेंका था। इस