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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

उसीकी जायदादसे उसका हर्जाना लिया जायेगा। आदेश मौखिक था या लिखित-- इसका सीधा उत्तर न देते हुए इस अफसरने कहा:"लिखित हो या मौखिक इससे क्या फर्क पड़ता है?" कहना मुश्किल है कि इस अफसर द्वारा दिये गये इस उत्तरमें निहित धृष्टता और उसके द्वारा जारी किये गये आदेशको 'क्रूरता'-- दोनों में से कौन अधिक आपत्तिजनक है। हमने 'क्रूरता' शब्दका प्रयोग जान-बूझकर किया है; इसलिए कि (गवाह द्वारा दिये गये उत्तरके अनुसार ही) “नोटिस चाहे किसी दूसरे ही व्यक्ति द्वारा बिगाड़ा या फाड़ा गया हो, प्रतिशोध उसी व्यक्तिसे लिया जाता जिसके घरपर वह लगा होता था। और जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके खयालसे आदेश उचित था, तो उनका उत्तर था:"मैं अब भी यही समझता हूँ कि आदेश उचित था । "

प्र०-क्या आपने स्कूली बच्चोंको कोड़े लगानेके सिलसिलेमें हिदायत दी थी कि सबसे बड़े छः लड़कोंको चुनकर कोड़े लगाये जायें?

उ०-जी हाँ, मोटे तौरपर यही किया था।

प्र०-क्या शारीरिक वृष्टिसे बड़े होना ही उनका दुर्भाग्य था।

उ०-जाहिर है।

प्र०-चूंकि वे बड़े थे, क्या इसीलिए उनको कोड़े खाने थे?

उ०-जी हाँ।

प्र०-क्या आप समझते हैं कि वैसा करना उचित था?

उ०-उस परिस्थिति में मेरा यही खयाल था, और आज भी है।

दोनों सम्बन्धित अधिकारियोंने जो उत्तर दिये थे, उनमें से चन्द नमूने ही हमने चुनकर पेश किये हैं। सचमुच उनके उत्तर धृष्टता और दायित्वहीनतामें बेजोड़ हैं । हमारी समझमें नहीं आता कि किसे ज्यादा बड़ा दोषी मानें--इन अफसरोंको ही या इनको नियुक्त करनेवाले उच्च अधिकारियोंको । इन अफसरोंको शायद यह पता नहीं था कि वे कितना जघन्य कृत्य कर रहे थे। लेकिन इनको चुननेवाले अधिकारियोंको तो इतना समझना चाहिए था कि ये अफसर ऐसे पदोंके लिए सर्वथा अनुपयुक्त हैं। और मामलेके सभी पहलुओंपर विचार करने के बाद हमारी राय यही बनी है कि स्थानीय परिस्थितियोंको देखते हुए तो मार्शल लॉ लागू करना नितान्त अनावश्यक था और अधिनियमपर' सर्वथा अनुचित ढंगसे अमल किया गया।

पट्टी और खेमकरन

ये दो छोटे-छोटे रेलवे स्टेशन कसूरसे कुछ मीलकी दूरीपर स्थित हैं। खेमकरन में स्टेशनको लूटा और तारोंको काटा गया। स्वयं श्री मार्सडनके कथनानुसार यह छोटी- सी घटना थी और इसके पीछे लगता है कि निचले वर्गीके लोगों, दूकानदारों, मूढ़- गँवार मजदूरों और इसी तरह दूसरे लोगोंका हाथ था । और जहाँतक पट्टीकी बात है, स्वयं श्री मार्सडनके कथनानुसार, उस गाँवके खास-खास लोगोंने अधिकारियों और

१. १९१९ का दण्डविमुक्ति अधिनियम।